Why did Bangladesh formed? (Hindi)
बांग्लादेश क्यों बना?
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-Rabindranath Tagore
बांग्लादेश बनने और अपने विभाजन से कई दहाइयों बाद भी पाकिस्तान कुछ ऐसी ही स्थिति में हैं. बांग्लादेश के बनने से बौखलाये पाकिस्तान जो गलतियां करना शुरू की वह आज तक भी थमी नहीं, इन्ही गलतियों के नतीजे हैं, जहाँ आज चार बांग्लादेश बनने की कगार पर हैं. सूरज तो गया, लेकिन उसको खोने के गम में पाकिस्तान ने सितारे भी गँवा दिए.
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धर्म बड़ा या संस्कृति? इस बहस में धर्म पर संस्कृति (Way of life) ने १९७१ में ही विजय प्राप्त किया और जिस दो कौमी नजरिये पर पाकिस्तान बना था उसे परास्त किया. आज जो पाकिस्तान बचा हैं वह इस हादसे से इतने सदमे में हैं की उससे उबरना उसके लिए कतई मुमकिन नहीं लग रहा हैं. मुमकिन भी होता अगर कुछ कोशिशें की जाती.... मगर कोशिशें करने की मंशा होती तो बांग्लादेश बनता ही नहीं! तो फिर कोशिशे क्यों ना की गयी होगी?
बांग्लादेश कैसे बना ये इतिहास छुपा नहीं हैं. बांग्लादेशी मुसलमानो तथा हिन्दुओं पर की गयी बर्बरता इतिहास का एक काला सच हैं. बंगालियों को पाकिस्तानी ही माना नहीं जाता था एवं उन्हें काले बंगाली कहकर खूब उपहास किया जाता रहा. उन पर उर्दू भाषा ढोयी गयी. उन से कभी ये नहीं पूछा गया की बांग्ला भाषा की उनकी नजर में अहमियत क्या थी. बस एक ही सोच रही होगी की जीना के दो कौमी नजरिये पर एक मुल्क बना रहेगा, भले ही चाहे उसकी भौगोलिक संरचना मेल ना खाती हो
उस वक़्त पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त की पंजाबी, खैबर पख्तूनख्वा की पश्तु, सिंध की सिंधी और बलूचिस्तान की बलोची मूल भाषाएँ थी. मगर फिर भी पश्चिमी पाकिस्तान के लोगो ने उर्दू को अपनी भाषा स्वीकार कर लिया था, जो केवल ६ प्रतिशत लोगो का प्रतिनिधित्व करती थी.
1951 की जनगणना के अनुसार पूर्व पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में 4.5 करोड़ लोग रहते थे जो केवल बंगाली बोलते थे, इसके विपरीत पश्चिमी पाकिस्तान 3.4 करोड़ लोग थे जो अलग अलग 4 भाषाएँ बोलते थे. अगर देखा जाए तो पूरे पाकिस्तान में बांग्ला भाषा बोलने वाले लोग बहुसंख्यक आबादी में थे. मगर फिर भी इस तरह व्यवहार किया जाता था की जैसे पूर्व पाकिस्तान किसी की कॉलोनी हो, जिन्हे अपने हजारो सालों संस्कृति एवं भाषा का दमन तथा उपहास केवल इस्लाम के नाम पर सहना पड़ता था.
1951 की जनगणना के अनुसार पूर्व पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में 4.5 करोड़ लोग रहते थे जो केवल बंगाली बोलते थे, इसके विपरीत पश्चिमी पाकिस्तान 3.4 करोड़ लोग थे जो अलग अलग 4 भाषाएँ बोलते थे. अगर देखा जाए तो पूरे पाकिस्तान में बांग्ला भाषा बोलने वाले लोग बहुसंख्यक आबादी में थे. मगर फिर भी इस तरह व्यवहार किया जाता था की जैसे पूर्व पाकिस्तान किसी की कॉलोनी हो, जिन्हे अपने हजारो सालों संस्कृति एवं भाषा का दमन तथा उपहास केवल इस्लाम के नाम पर सहना पड़ता था.
उर्दू विरुद्ध बांग्ला भाषा विवाद का बांग्लादेश बनने में सबसे बड़ा किरदार रहा. मगर सवाल यह उठता हैं की बंगाली मुसलमान उर्दू को क्यों अपनाना नहीं चाहते थे? विपरीत पश्चिमी पाकिस्तान ने उर्दू को इतनी आसानी से क्यों स्वीकार किया?
उर्दू भाषा का जन्म सिंध प्रान्त में सन ७२० के पश्चात हुवा. ये एक ऐसी भाषा थी जो फ़ारसी और अरबी भाषा से प्रेरणा लेकर बनी और मुस्लिम आक्रामक लोगों का साथ देनेवाले अलग अलग भाषा के स्थानीय लोगों में प्रचलित हुयी.
बीते शतक में फ़ारसी भाषा में पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब में जन्मे महानतम शायर अलम्मा इक़बाल ने अपनी रचनाएँ लिखी, जो उस वक्त के भारत से लेकर मध्य पूर्व एशिया तक अपना लोहा मनवाने लगी थी.
बांग्ला भाषा एक इंडो-आर्यन संस्कृति की उपज हैं, जिसमें महानतम कवी और नोबेल पुरस्कार प्राप्त रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविता की रचनाएँ लिखी. उस वक़्त तक फ़ारसी और बांग्ला एक बेहतर भाषा की ऊंचाई पर पहुँची चुकी थी.
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बीते शतक में फ़ारसी भाषा में पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब में जन्मे महानतम शायर अलम्मा इक़बाल ने अपनी रचनाएँ लिखी, जो उस वक्त के भारत से लेकर मध्य पूर्व एशिया तक अपना लोहा मनवाने लगी थी.
बांग्ला भाषा एक इंडो-आर्यन संस्कृति की उपज हैं, जिसमें महानतम कवी और नोबेल पुरस्कार प्राप्त रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविता की रचनाएँ लिखी. उस वक़्त तक फ़ारसी और बांग्ला एक बेहतर भाषा की ऊंचाई पर पहुँची चुकी थी.
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अलम्मा इक़बाल विरुद्ध रविंद्रनाथ टैगोर
अलम्मा इक़बाल (1877-1938) और रविंद्रनाथ टैगोर (1861-1941) दोनों का जीवनकाल एक ही समय का हैं. दोनों भी महानतम रचनाकार रहे हैं. जाहिर हैं की दोनों के प्रशंसकों की संख्या भी कुछ कम नहीं थी. उन प्रशंसकों में हमेशा दोनों में बेहतर कौन हैं इस की चर्चा होना स्वाभाविक हैं.वैसे तो इन दोनों ने अलग अलग भाषाओँ में लिखा हैं इसलिए तुलना तो हो नहीं सकती.
इतने महान कवी होने के बावजूद दोनों भी कभी भी अपने जीवनकाल में एक दुसरे से नहीं मिले. इक़बाल ने कभी भी रविंद्रनाथ टैगोर को अपनी रचनाओं में स्थान नहीं दिया. मगर रविंद्रनाथ टैगोर अलम्मा इक़बाल को एक महान शायर समज़ते थे और वैसा इन्होने कई जगहों पर उल्लेख भी किया हैं.
जब टैगोर लाहौर गए तो खुद बिन बुलाये अल्लामा इक़बाल के घर पहुँच गए थे, ताकि एक ऊंची कद वाले कवी से मुलाक़ात हो सके. मगर उनकी मुलाक़ात नहीं हो सकी, अलम्मा इक़बाल उस दिन शहर में नहीं थे.
रविंद्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने के पश्चात इक़बाल के मन में उनके मन में खटास महसूस कर रहे थे.
नोबेल पुरस्कार मिलने के पश्चात पर्शिया (ईरान), इराक और सऊदी के राजाओं ने टैगोर की प्रशंसा कर उन्हें अपने देश में निमंत्रित किया, इस पर नाराजगी जताते हुए इक़बाल ने पर्शियन राजा को पत्र लिखकर चेताया की, टैगोर की यात्रा से हिन्दू और पर्शियन लोगों को उनके एक (आर्य) होने की भावना को जगा सकता हैं और (अरेबिक मुस्लिम आक्रमणकारीयो ने कब्जे में लिए) ईरानी जनता को फिर से अपने मूल पारसी धर्म का स्वाभिमान जगा सकती हैं. कुछ तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता हैं, की सन 1913 में नोबेल पुरस्कार ना मिलने से इक़बाल के मन में टैगोर के खिलाफ नफरत भरी हुयी थी. वह टैगोर की रचनाओं इस्लामी जगत में स्वीकृत होना पसंद नहीं करते थे.
जब टैगोर लाहौर गए तो खुद बिन बुलाये अल्लामा इक़बाल के घर पहुँच गए थे, ताकि एक ऊंची कद वाले कवी से मुलाक़ात हो सके. मगर उनकी मुलाक़ात नहीं हो सकी, अलम्मा इक़बाल उस दिन शहर में नहीं थे.
रविंद्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने के पश्चात इक़बाल के मन में उनके मन में खटास महसूस कर रहे थे.
नोबेल पुरस्कार मिलने के पश्चात पर्शिया (ईरान), इराक और सऊदी के राजाओं ने टैगोर की प्रशंसा कर उन्हें अपने देश में निमंत्रित किया, इस पर नाराजगी जताते हुए इक़बाल ने पर्शियन राजा को पत्र लिखकर चेताया की, टैगोर की यात्रा से हिन्दू और पर्शियन लोगों को उनके एक (आर्य) होने की भावना को जगा सकता हैं और (अरेबिक मुस्लिम आक्रमणकारीयो ने कब्जे में लिए) ईरानी जनता को फिर से अपने मूल पारसी धर्म का स्वाभिमान जगा सकती हैं. कुछ तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता हैं, की सन 1913 में नोबेल पुरस्कार ना मिलने से इक़बाल के मन में टैगोर के खिलाफ नफरत भरी हुयी थी. वह टैगोर की रचनाओं इस्लामी जगत में स्वीकृत होना पसंद नहीं करते थे.
कभी 'सारे जहाँ से अच्छा....' लिखने वाले इक़बाल '...मुस्लिम हैं हम वतन हैं सारा जहाँ हमारा... चिनो अरब हमारा...' जैसे रचनाये बनाने लगे. बाद में इक़बाल पाकिस्तान की मांग करनेवाले कुछ चुनिंदा नेताओं में से एक बने. इन नेताओं ने हिन्दुओं के खिलाफ नफरत फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फ़ारसी में लिखने की वजह से इक़बाल को पश्चिमी पाकिस्तान का चेहरा बनकर उभरे, मगर रबीन्द्रनाथ टैगोर के प्रति इक़बाल और उनके प्रशंसकों के मन में जो नफरत थी, वही नफरत पश्चिमी पाकिस्तानियों के मन में बांग्ला बोलनेवाले लोगों के प्रति भी रही होगी, जो की बांग्लादेशी हिन्दू और मुसलमानों पर समय समय पर कहर बरपा रही थी.
जबकि पूर्व पाकिस्तान बनने पर भी उनके आदर्श रबीन्द्रनाथ ही रहे. जिस भाषा में रबीन्द्रनाथ जी ने लिखा वही बांग्ला भाषा उनकी स्वाभिमान का स्रोत रही और भारतीय संस्कृति उनकी जीवनशैली. आज भी बांग्लादेश का राष्ट्रगान जो हैं उसे रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही लिखा हैं.
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तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता हैं की 1913 में ही बांग्लादेश की नीव रखी गयी थी. पाकिस्तान बनने के पूर्व ही, बांग्लादेश बनना तय था. पाकिस्तान ने अपना सूरज गँवा दिया था. जिन्नाह और इक़बाल द्वारा बनाया गया दो कौमी नजरिये २४ साल में ही ख़त्म होते देख पाकिस्तान के मन में आक्रोश और आँखों में खून के आंसू थे. बिना इसकी परवाह किये बिना की पाकिस्तान का जन्म ही किसी के नफरत पर हुवा हैं. वहीँ नफरत आज भी पनप रही हैं.
उसके बाद पाकिस्तान कट्टर इस्लाम की और बढ़ना शुरू हुवा और भारतीय उप महाद्वीप की संस्कृति वाली अपनी पहचान मिटाकर मध्य पूर्व एशिया की पहचान बनाने की शुरुवात की.
बाद में घौरी, ग़ज़नी जैसे नामों वाले मिसाइल्स बनाये. अपने पाठ्य पुस्तकों में झूठा इतिहास लिखना शुरू किया. मोहम्मद बिन क़ासिम जैसे जल्लाद को अपने बच्चों का हीरो बताना शुरू किया. बांग्लादेश बनने की इस घटना ने पाकिस्तान में अपने मूलभूत अधिकारों की मांग करनेवालों हर किसी आवाज को बेरहमी से कुचला जा रहा हैं. परिणामस्वरूप आज वहां ४ से ज्यादा बांग्लादेश बनने की राह पर हैं.
बाद में घौरी, ग़ज़नी जैसे नामों वाले मिसाइल्स बनाये. अपने पाठ्य पुस्तकों में झूठा इतिहास लिखना शुरू किया. मोहम्मद बिन क़ासिम जैसे जल्लाद को अपने बच्चों का हीरो बताना शुरू किया. बांग्लादेश बनने की इस घटना ने पाकिस्तान में अपने मूलभूत अधिकारों की मांग करनेवालों हर किसी आवाज को बेरहमी से कुचला जा रहा हैं. परिणामस्वरूप आज वहां ४ से ज्यादा बांग्लादेश बनने की राह पर हैं.
कुछ दिन पूर्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान एक ट्वीट किया था.
Those who discover and get to understand the wisdom of Gibran's words, cited below, get to live a life of contentment. pic.twitter.com/BdmIdqGxeL— Imran Khan (@ImranKhanPTI) June 19, 2019
इस ट्वीट में कोट की गयी पंक्तियां खलील जिब्रान द्वारा लिखी हैं ऐसा इमरान मानते हैं. दरअसल इस ये पंक्तियां रबीन्द्रनाथ टैगोर जी की लिखी हुयी हैं. उनको कुछ ट्विटर प्रशंसकों द्वारा यह गलती सुधारने के लिए कहा गया मगर अभी तक उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं. ये गलती से हुवा हैं या जानबूझकर ये तो इमरान ही जानते हैं; मगर जानबूझकर किया गया होगा तो नए पाकिस्तान में भी वही पुरानी जहरीली सोच कायम हो तो और कई बांग्लादेश बनना ज्यादा दूर नहीं हैं.
इक़बाल और जीना की सोच को झुट्लाते हुए दो कौमी नजरिया अब कई कौमी नजरियों में बदलने के लिए बेकरार हैं....
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