Did BJP lost Maharashtra due to overconfidence
क्या महाराष्ट्र में भाजपा को अति आत्मविश्वास ने डुबोया?
पिछले महिना भर से एक थ्रिलर और सस्पेस हिंदी फिल्म की तरह महाराष्ट्र की राजनीति सरपट दौड़ रही है. जब से महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे घोषित हुए है, तभी से महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आया और सत्ता की सुई सतत रूप से अपना पाला बदलती रही. चर्चाओं, विवादों और अफवाहों का दौर इस महिने भर में अपनी चरम पर रहा. राजनीति की शतरंज पर एक-दूसरे को शह और मात का खेल चलता रहा.
इस पूरे नाटक में विभिन्न तरह के काफी चौंका देने वाले मोड़ भी आए. सत्ता की होड़ में कोई भी राजनीतिक दल पीछे हटने को तैयार नहीं था. सत्ता तक पहुंचने के लिए हर कोई तेजी से दौड़ लगाता रहा और साथ ही एक-दूसरे की टांग भी खिंचते रहे. लेकिन इस पूरे दौर में सत्ता के लिए आतूर तथा सत्ता हथियाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने वाली भाजपा को उसका अति आत्मविश्वास ही ले डुबा, यह कहना गलत नहीं होगा.
बता दें कि, अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए. पिछले चुनावों से सबक लेते हुए इस बार भाजप-शिवसेना तथा काँग्रेस-राष्ट्रवादी काँग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ने की बजाय गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे. चुनावों के दौरान दोनों ही गठबंधनों ने एक-दूसरे की जमकर खिंचाई की. प्रचार का कानफाड़ू शोरगुल चला. मतदान के नतीजे जब घोषित हुए तो भाजपा को कुल १०५ और शिवसेना ५६ सीटें मिली. कुछ सीटें इन दोनों पार्टियों के साथ गठबंधन करने वाली पार्टियों को मिली. मोटे तौर पर यह तय माना जाने लगा कि, महाराष्ट्र में फिर एक बार भाजपा-शिवसेना महायुति की सरकार पांच वर्षों तक चलेगी.
जब जनता महाराष्ट्र में अब महायुति की ही सरकार बनेगी, ऐसे मानकर चल रही थी, तभी कहानी में बड़ा ट्वीस्ट आ गया. शिवसेना ने चुनावों से पहले भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी का ५०-५० फाॅर्म्युला तय होने की बात कहते हुए ढाई साल के लिए मुख्यमंत्रिपद की मांग की. शिवसेना की ओर से यह मांग सामने आने के बाद भाजपा की ओर से इस तरह का कोई फाॅर्म्युला तय न होने की बात कहते हुए शिवसेना की मांग को ठुकरा दिया गया. लेकिन भाजपा के इस रवैये से शिवसेना के नेता आगबबुला हो उठे और उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन सरकार ना बनाने की घोषणा की.
शिवसेना के इस रवैये के बाद भाजपा भी सख्त होती दिखाई दी. पिछले पांच वर्षों में भाजपा सरकार को सत्ता में रहते हुए भी शिवसेनाने विरोध किया था, इसलिए अब शिवसेना की इस तरह अव्यवहारिक मांग को ना माना जाए, ऐसा वैचारिक प्रवाह भाजपा में चला. भाजपा-शिवसेना में चल रही इस खिंचतान में शिवसेना अपनी मांग पर अड़िग रही. शिवसेना के पार्टीप्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि, उन्होंने शिवसेना के संस्थापक बालासाहब ठाकरे को यह वचन दिया कि एक दिन महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा. इसलिए अब शिवसेना इस मांग से कभी पीछे नहीं हटेगा.
इस बीच शिवसेना की ओर से मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी उनके फायरब्रांड नेता तथा राज्य सभा सांसद संजय राऊत को सौंपी गई. संजय राऊत ने शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने के लिए सभी विकल्प खुले होने की बात कही. साथ ही वे हर रोज प्रेस के लोगों को बुलाकर भाजपा नेताओं पर तंज कसते रहे. लेकिन उनके इन तीखे बयानों से उधर भाजपा के नेता तिलमिला उठे. भाजपा बार-बार ढाई साल के मुख्यमंत्रिपद के विषय पर कोई भी बातचित ही ना होने की बात पर कायम रही.
यही से शिवसेना और भाजपा के दौरान खाई दिनो-दिन चौड़ी होती गई. दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर शाब्दिक बाण छोड़ते रहे. यहां पर संजय राऊत की डिप्लोमेसी ने बड़ा काम किया. बताया जाता है कि, संजय राऊत और शरद पवार के पिछले कई वर्षों से मधूर संबंध रहे है. हालांकि, शरद पवार पहले से ही इस भूमिका पर कायम रहे कि, महाराष्ट्र में काँग्रेस-राष्ट्रवादी काँग्रेस को विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है, इसलिए वे अपना काम विपक्ष में बैठकर
करते रहेंगे.
लेकिन जो लोग महाराष्ट्र की राजनीति को अच्छी तरह से पहचानते है, वे हमेशा कहते है कि शरद पवार राजनीति में बोलते कुछ है और करते कुछ और ही है. उनके अंतिम फैसलों की जानकारी उनके करीबियों और यहां तक के घरवालों को भी नहीं होती. पवार साहब की यही खूबी उन्हें एक माहीर राजनीतिज्ञ बनाती है, ऐसा उनकी पार्टी के लोग कहते है. शरद पवार के विरोधी भी उनकी कूटनीति और राजनीति के काफी कायल है और उनसे यह बात सीखने की बात निजी तौर पर कहते है.
जब भाजपा-शिवसेना में सत्ता की खिंचतान हो रही थी और उनके नेता एक-दूसरे पर आरोपों की झड़ियां लगा रहे थे, तब शरद पवार शांति और चतुराई से अपने मोहरे आगे कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता यह मानकर चल रहे थे कि, शिवसेना को उनके सामने झुकने के अलावा दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं. लेकिन भाजपा नेताओं की यहीं पर गफलत हो गई.
भाजपा नेता इस बात से भी निश्चिंत थे कि, केंद्र में उनकी सरकार है. साथ ही राज्यपाल भी उन्हीं की पार्टी का पूर्व नेता है. हलांकि, राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है और वह राजनीति से परे रहना चाहिए. लेकिन पूरा देश यह जानता है कि, देश में राज्यपालों की भूमिकाएं कितनी आशंका से ओतप्रोत रही है. कांग्रेस के समय में भी राज्यपालों पर सवाल उठते ही रहे है. कई बार राज्यपालों पर पक्षपात करने का आरोप लगता रहा है. यह दौर आज खत्म हो गया है, ऐसा कोई साहस के साथ नहीं कह सकता.
इस बीच काँग्रेस-राष्ट्रवादी काँग्रेस के साथ शिवसेना की बातचित होती रही. वहीं दूसरी ओर शरद पवार की भूमिका को लेकर भी कई तरह के संदेह उठते रहे. एक तरफ तो वे शिवसेना से बातचित कर रहे थे, लेकिन फिर भी वे शिवसेना के साथ सत्ता स्थापन करने को लेकर नरो वा कुंजरो की भूमिका ले रहे थे, जिससे लोगों में और भी ज्यादा संभ्रम पैदा हो रहा था.
इस दौरान सत्ता के लिए आतूर पार्टियां दूसरी पार्टियों के विधायकों को तोड़कर सत्ता का जुगाड़ जमाने का प्रयास पर्दे के पीछे से कर ही रही थी, लेकिन विधायकों के खरीद-फरोख़्त के आरोपों के छींटे अपने कपड़ों पर ना उड़ें इससे कतरा भी रही थी. जिससे इस दिशा में भी कोई आगे प्रगति नहीं हो रही थी.
इस दौरान महाशिवआघाड़ी के दृष्टि से प्रयास हो रहे थे. चूंकि, काँग्रेस-राष्ट्रवादी काँग्रेस और शिवसेना की विचारधारा पूरी तरह से विरोधाभासी होने के चलते इन तिनों के साथ में आकर सरकार बनाने के लिए कुछ बीतें तय होनी जरुरी थी. इसलिए इनके बीच वार्ताओं का दौर चल रहा था. कुछ मुद्दों पर सहमति बनाकर एक काॅमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने का प्रयास किया जा रहा था.
लेकिन इस बीच राज्यपाल भगतसिंह कोशियारी ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. यह केवल तिसरा ही मौका था जब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन कायम किया गया था. यह पूरा ग्रेट ग्रँड राजनीतिक तमाशा महाराष्ट्र की जनता हताशा से देख रही थी.
इस पूरे घटनाक्रम में तब और एक नाटकीय मोड़ आ गया जब २२ नवम्बर को अचानक सुबह साढ़े पांच बचे महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया और अचानक भाजपा के विधानमंडल अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्रिपद की और राष्ट्रवादी काँग्रेस के गुटनेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्रिपद की शपथ ली थी.
सुबह-सुबह हुए इस नाटकीय घटनाक्रम से सभी पार्टियों के लोगों समेत महाराष्ट्र की जनता को ४४० वोल्ट का तगड़ा झटका लग गया. इस बात से सभी दंग रह गए कि यह क्या हो गया. शिवसेना के पैरों तले से तो जैसे जमीन ही खिसक गई थी. कई लोग राष्ट्रवादी काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को एक धोखेबाज कहते हुए उन्हें ही कोस रहे थे. यह स्थिति तब तक कायम रही जब तक शरद पवार की ओर से कोई अधिकृत बयान प्राप्त नहीं हुआ.
इस पूरे घटनाक्रम के संदर्भ में सबसे पहले बयान आया शिवसेना नेता संजय राऊत का. उन्होंने इस पूरे मामले में शरद पवार की कोई भूमिका ना होने की बात कही. लेकिन कोई विश्वास ही करने को तैयार नहीं था. जब शरद पवार और राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी की ओर से विरोध शुरू हुआ तब सारी स्थिति स्पष्ट हो गई.
शिवसेना, राष्ट्रवादी काँग्रेस और कांग्रेस की एक संयुक्त प्रेस मिटिंग हुई, जिसमें इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से खुलासा किया गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. राकाँ के गुटनेता अजित पवार पार्टी की ओर से भाजपा के साथ सरकार बना चुका था. इस पूरे घटनाक्रम के संदर्भ में किसी को भी सफाई देते नहीं बन रहा था.
सफाई देते-देते भाजपा के नेताओं के गले सूख रहे थे. महाराष्ट्र की जनता यह भी देख रही थी कि, जिस व्यक्ति पर घोटालों और भ्रष्टाचार के चिल्ला-चिल्लाकर आरोप किए जा रहे थे. जिस व्यक्ति को भाजपा वाले जेल भेजकर चक्की पिसिंग... पिसिंग... करवाने वाले थे, उसे सीधे अपनी सरकार में उपमुख्यमंत्री बना डाला था. भाजपा के प्रवक्ता बार-बार छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम लेकर उनकी आड़ में अपने अचंभे से भरपूर फैसले को छुपाने का प्रयास कर रहे थे.
इस दौरान दोनों ही खेमों से विधायकों की खिंचतान चलती रही. पहली बार महाराष्ट्र की जनता यह देख रही थी कि, राष्ट्रवादी काँग्रेस या काँग्रेस के विधायकों को शिवसेना के नेता कहीं-कहीं से पकड़-पकड़ कर शरद पवार के पास लेकर आ रहे थे. इस दौरान मुंबई में हमारी क्या ताकत है यह दिखाने का प्रयास शिवसेना की ओर से किया जा रहा था. जोकि स्पष्ट रूप से दिखाई भी दिया गया.
अब तक पूरे प्रकरण में भाजपा पूरी तरह से आश्वस्त थी कि, राज्यपाल, राज्य की सत्ता और विधानसभा अध्यक्ष के दम पर वह अपना बहुमत साबित कर पाएंगी. भाजपा की यह आश्वस्तता अब तक अति आत्मविश्वास में तब्दील हो चुकी थी. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में वास्तविकता रूप उन्हें शह और मात दी जा रही थी, यह वे भूल रहे थे.
शिवसेना ने इस पूरे मामले में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उच्चतम न्यायालय ने भी पूरे प्रकरण जांचने के बाद एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. फैसला भी एक ऐसे मौके पर आया जब देश में संविधान दिवस मनाया जा रहा था. उच्चतम न्यायालय ने २४ घंटों में बहुमत सिद्ध कराने, मतदान पूरी तरह खुला करवाने और पूरे विश्वासमत का वीडियो शूटिंग कराने का आदेश दिया.
इस आदेश का जहां काँग्रेस, राष्ट्रवादी काँग्रेस और शिवसेना की ओर से जमकर स्वागत किया गया, वहीं दूसरी ओर इस फैसले से भाजपा के नेता काफी सकते में आ गए. क्योंकि गुप्त मतदान पद्धति से सरकार को बचाने की बात सोच रही भाजपा के सभी अरमान हवा हो गए. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रवादी काँग्रेस की ओर से अजित पवार पर उपमुख्यमंत्रिपद से त्यागपत्र देने के लिए दबाव बनाया जाता रहा.
आखिर इन सभी प्रयासों से हार मानते हुए पहले अजित पवार ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को और फडणवीस ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप कर महाशिवआघाड़ी के लिए अपना रास्ता खोल दिया. फडणवीस के इस्तीफे के बाद पिछले महिने भर से चल रहे एक नाटक पर पर्दा गिर गया. सत्ता और संवैधानिक पदों के गलत इस्तेमाल के दम पर सत्ता कायम करने का भाजपा का मिशन पूरी तरह से फेल हो गया.
भाजपा के काफी कद्दावर और राजनीति में माहीर नेता शरद पवार को शह और मात देने का प्रयास किया, लेकिन कबड्डी एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके शरद पवार भाजपा के नेताओं को ऐसा धोबीपछाड़ मारा कि, बहुमत के समीप पहुंचने के बाद भी भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. मोदीयुग के उदय के बाद केंद्र तथा विभिन्न राज्यों में सत्ता में प्राप्त करने से भाजपा नेताओं का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया था. लेकिन यह आत्मविश्वास जब अति आत्मविश्वास में तब्दील हो जाए, तो क्या होता यह महाराष्ट्र में उन्हें देखने को मिला. इसमें कोई दो राय नहीं है कि, यही अति आत्मविश्वास भाजपा को महाराष्ट्र में ले डुबा है.
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