Panchakarma: Purpose and Requirements (Hindi)
पंचकर्म : प्रयोजन और आवश्यकताएं
मनुष्य को केवल शारीरिरक ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी पूरी तरह से रोगमुक्त बनाने के लिए आयुर्वेद की रचना की गई है. आयुर्वेद का मूल उद्देश्य है ‘स्वास्थ्यस्य स्वास्थ्य रक्षणम्, आतुराय विकार प्रशमनम’ इसका मतलब है स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य का रक्षण करना और रोगी के शरीर से रोगों को नष्ट करना.
आयुर्वेद में निहित बातों का अच्छी तरह से पालन करें तो कोई भी व्यक्ति आज के समय में भी स्वस्थ जीवन जी सकता है तथा शरीर और मन में व्याप्त विकारों से मुक्ति पा सकता है. इसी आयुर्वेद की एक अहम चिकित्सा पद्धति के तौर पर पंचकर्म को बताया जाता है. पंचकर्म हमारे सीर से पांव तक शरीर की शुद्धि का एक राजमार्ग है.
पंचकर्म से शरीर में विकारों को फलने-फुलने का मौका दिलाने वाले घटकों का नि:सारण किया जाता है, जिससे स्वस्थ शरीर और प्रफुल्लित मन की अनुभूति प्राप्त होती है.
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति दैनिक जीवन में पंचकर्म चिकित्सा का पालन कर सकता है. इसके तहत प्रतिदिन अभ्यंग (बॉडी मसाज) शिरो अभ्यंग (हेड़ मसाज), नस्य प्रयोग (नाक में औषधियुक्त तेल/घी डालना) आते है. इनका पालन करते हुए हम पंचकर्म करा सकते है. इन पद्धतियों का अनुसरण करने से हमें स्वस्थ शरीर प्राप्त होता है और कोई भी स्वस्थ शरीर दैनंदिन जीवन में उत्साह के साथ काम कर सकता है.
भारत के ऋषि-मुनी और आचार्यों ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की खोज की, उन्होंने मनुष्य के कान को आदान काल (उत्तरायण) और विसर्ग काल (दक्षीणायन) ऐसे दो मार्गों में विभाजीत किया है. आदानकाल में सूर्य के प्रभाव से शरीर का बल कम होता है और विसर्ग काल में ठण्ड के प्रभाव से शरीर का बल बढ़ता है. यह दोनों ही काल साल भर के विभिन्न छह ऋतुओं में भिन्न होते है. जैसे आदान काल (उत्तरायण) शिशीर ऋतु, वसन्त ऋतु और ग्रीष्म ऋतु में होते है, जबकि विसर्ग काल (दक्षीणायन) वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और हेमंत ऋतु में होते है.
आयुर्वेद में प्रत्येक ऋतु में स्वास्थ्य के रक्षण के लिए किस तरह का आहार, विहार करना चाहिए यह बताया गया है. इसे ऋतुचर्या कहा जाता है. ऋतुचर्या में भी पंचकर्म का बहुत महत्व बताया गया है. इसके तहत हेमंत ऋतु में अभ्यंग (बॉडी मसाज), मूर्थ्य तैल यानी हेड मसाज, शीर पर तेल की मालिश, स्वेदन (गर्म पानी की भांप लेना) करना चाहिए.
वसंत ऋतु में कफ दोष का प्रकोप काफी ज्यादा होता है. इसलिए इस दोष को शरीर से बाहर निकालने के लिए वमन (उल्टी) कराना जरुरी होता है. शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप काफी ज्यादा होता है. इस दोष से छुटकारा पाने के लिए विरेचन (जुलाब) कराया जाता है. वर्षा ऋतु में वात दोष काफी बढ़ जाता है. इस दोष को निकालने के लिए ‘वस्ति’ का प्रयोग होता है. शिशीर ऋतु में अधिक शैल्य और अधिक रुक्षता होती है. इसलिए अभ्यंग, मूर्थ कराना चाहिए. ग्रीष्म ऋतु में उष्णता काफी ज्यादा रहती है. इसलिए शीत लेप लगाना आवश्यक होता है.
वाजीकरण चिकित्सा से वीर्य का उत्पादन बढ़ता है. जिससे सहवास शक्ति बढ़ती है. इन दोनों ही चिकित्सा पद्धतियों पर अमल करने से पहले पंचकर्म कराने की सलाह दी जाती है. पंचकर्म कराने के बाद रसायन, वाजीकरण चिकित्सा की गई तो उसका असर अच्छा रहता है.
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मनुष्य को केवल शारीरिरक ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी पूरी तरह से रोगमुक्त बनाने के लिए आयुर्वेद की रचना की गई है. आयुर्वेद का मूल उद्देश्य है ‘स्वास्थ्यस्य स्वास्थ्य रक्षणम्, आतुराय विकार प्रशमनम’ इसका मतलब है स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य का रक्षण करना और रोगी के शरीर से रोगों को नष्ट करना.
आयुर्वेद में निहित बातों का अच्छी तरह से पालन करें तो कोई भी व्यक्ति आज के समय में भी स्वस्थ जीवन जी सकता है तथा शरीर और मन में व्याप्त विकारों से मुक्ति पा सकता है. इसी आयुर्वेद की एक अहम चिकित्सा पद्धति के तौर पर पंचकर्म को बताया जाता है. पंचकर्म हमारे सीर से पांव तक शरीर की शुद्धि का एक राजमार्ग है.
पंचकर्म से शरीर में विकारों को फलने-फुलने का मौका दिलाने वाले घटकों का नि:सारण किया जाता है, जिससे स्वस्थ शरीर और प्रफुल्लित मन की अनुभूति प्राप्त होती है.
स्वस्थ मनुष्यों के लिए पंचकर्म
ऐसा नहीं है कि, केवल किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को ही पंचकर्म करना जरुरी होता है. ऊपरी तौर पर हमारा शरीर कितना भी हमें स्वस्थ लगें, लेकिन वह अंदर से स्वस्थ होगा या नहीं यह नहीं बताया जा सकता. इसलिए केवल किसी मरीज को ही नहीं, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को भी पंचकर्म की जरुरत होती है. इसके तीन प्रयोजन बताए जाते है.1) दैनिक आचरण में पंचकर्म
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति दैनिक जीवन में पंचकर्म चिकित्सा का पालन कर सकता है. इसके तहत प्रतिदिन अभ्यंग (बॉडी मसाज) शिरो अभ्यंग (हेड़ मसाज), नस्य प्रयोग (नाक में औषधियुक्त तेल/घी डालना) आते है. इनका पालन करते हुए हम पंचकर्म करा सकते है. इन पद्धतियों का अनुसरण करने से हमें स्वस्थ शरीर प्राप्त होता है और कोई भी स्वस्थ शरीर दैनंदिन जीवन में उत्साह के साथ काम कर सकता है.
2) ऋतु अनुसार पंचकर्म
भारत के ऋषि-मुनी और आचार्यों ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की खोज की, उन्होंने मनुष्य के कान को आदान काल (उत्तरायण) और विसर्ग काल (दक्षीणायन) ऐसे दो मार्गों में विभाजीत किया है. आदानकाल में सूर्य के प्रभाव से शरीर का बल कम होता है और विसर्ग काल में ठण्ड के प्रभाव से शरीर का बल बढ़ता है. यह दोनों ही काल साल भर के विभिन्न छह ऋतुओं में भिन्न होते है. जैसे आदान काल (उत्तरायण) शिशीर ऋतु, वसन्त ऋतु और ग्रीष्म ऋतु में होते है, जबकि विसर्ग काल (दक्षीणायन) वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और हेमंत ऋतु में होते है.
आयुर्वेद में प्रत्येक ऋतु में स्वास्थ्य के रक्षण के लिए किस तरह का आहार, विहार करना चाहिए यह बताया गया है. इसे ऋतुचर्या कहा जाता है. ऋतुचर्या में भी पंचकर्म का बहुत महत्व बताया गया है. इसके तहत हेमंत ऋतु में अभ्यंग (बॉडी मसाज), मूर्थ्य तैल यानी हेड मसाज, शीर पर तेल की मालिश, स्वेदन (गर्म पानी की भांप लेना) करना चाहिए.
वसंत ऋतु में कफ दोष का प्रकोप काफी ज्यादा होता है. इसलिए इस दोष को शरीर से बाहर निकालने के लिए वमन (उल्टी) कराना जरुरी होता है. शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप काफी ज्यादा होता है. इस दोष से छुटकारा पाने के लिए विरेचन (जुलाब) कराया जाता है. वर्षा ऋतु में वात दोष काफी बढ़ जाता है. इस दोष को निकालने के लिए ‘वस्ति’ का प्रयोग होता है. शिशीर ऋतु में अधिक शैल्य और अधिक रुक्षता होती है. इसलिए अभ्यंग, मूर्थ कराना चाहिए. ग्रीष्म ऋतु में उष्णता काफी ज्यादा रहती है. इसलिए शीत लेप लगाना आवश्यक होता है.
3) रसायनादि गुण प्राप्ति के लिए पंचकर्म
रसायन और वाजीकरण आयुर्वेद की विशिष्ट चिकित्सा पद्धति है. रसायन का उद्देश्य शरीर में उत्तम धातुपोषण के माध्यम से दीर्घायु, रोगप्रतिकारक शक्ति और उत्तम बुद्धिशक्ति को उत्पन्न कराना होता है.वाजीकरण चिकित्सा से वीर्य का उत्पादन बढ़ता है. जिससे सहवास शक्ति बढ़ती है. इन दोनों ही चिकित्सा पद्धतियों पर अमल करने से पहले पंचकर्म कराने की सलाह दी जाती है. पंचकर्म कराने के बाद रसायन, वाजीकरण चिकित्सा की गई तो उसका असर अच्छा रहता है.
रोगी के लिए पंचकर्म
पंचकर्म के माध्यम से शरीर के विषों को बाहर निकालकर शरीर पूरी तरह से शुद्ध किया जाता है. उसी से रोगनिवारण भी होता है. क्योंकि पंचकर्म रोगों के कारणों को जड़ से मिटाने का काम करता है. इससे शरीर और मन दोनों ही स्वस्थ बनते है.अधिक जानकारी के लिए संपर्क
- डॉ. जयंत अभ्यंकर,
सीईओ, शारंगधर फार्मा प्रा. लि., पुणेमो. - +91 7030013636, +91 9595100500
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