आधुनिक अनुसंधानों में आयुर्वेद को प्रोत्साहन जरुरी
आयुर्वेद की ओर देखने का हमारा तंग नजरिया बदलना जरुरी हैं...!
आयुर्वेद इस विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आहे. यह पूरी तरह से प्रमाणित और सुरक्षित है. भारत में अनुसंधानित हुई यह चिकित्सा पद्धति एक अनमोल धरोहर है. आयुर्वेद केवल किसी बीमार मनुष्य को स्वस्थ बनाने की चिकित्सा पद्धति नहीं होती. बल्कि इससे कहीं ज्यादा इसमें सामर्थ्य है.
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विदेश से आई पैथियों को ज्यादा तरजीह दी गई. इसमें केमिकल की दवाइयों को ज्यादा इस्तेमाल होने लगा. इससे मरीज जल्दी ठीक तो हो जाता है, लेकिन इसके कई तरह के साइड इफेक्ट होते है. लेकिन आयुर्वेद इनसे कहीं बेहतर है.
यह हमारे ऋषि-मुनियों ने सदियों के अनुसंधानों से तैयार किया है. इसमें काफी ज्यादा सामर्थ्य है. लेकिन पिछले कई वर्षों में जानबूझकर ऐसा प्रचार किया गया कि, आयुर्वेद एक बेकार चिकित्सा पद्धति है और इसकी कई सारी मर्यादाएं है. इस स्थिति में आज आयुर्वेद अपने ही देश में एक दुय्यम दर्जे की चिकित्सा पद्धति बन बैठी है. लेकिन आज के कोरोना संकट के समय में आयुर्वेद को इलाज तथा अनुसंधानों में तरजीह मिलना जरुरी है.
क्या है आयुर्वेद?
आयुर्वेद यह शब्द ‘आयुर’ यानी जीवन और ‘विद’ यानी ज्ञान इन दो शब्दों के मिलाप से बना है. इसका मतलब है हमारे जीवन में जन्म से लेकर मृत्यू तक हमारे जीवन को अच्छी तरह से जांचना और इसका ज्ञान प्राप्त करना. आयुर्वेद केवल बीमार मानवी शरीर पर इलाज कराने वाला शास्त्र या थेरेपी नहीं है.
आमतौर पर लोगों में आयुर्वेद के प्रति इसी तरह का संकुचित भाव रहता है. लेकिन हमें आयुर्वेद को काफी व्यापक पैमाने पर देखना जरुरी है. प्रकृति तो पैदा होते समय हमें एक स्वस्थ शरीर देती है और उसे संचालित करने के लिए मन और भावनाएं प्रदान करती है. जब तक हम शरीर और मन का तालमेल अच्छी तरह से नहीं बिठाएंगे एक स्वस्थ जीवन की कामना नहीं की जा सकती और हमारा जीवन सुखी नहीं हो सकता. इसी को पूरा करने के लिए और हमारे शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेद की चिकित्सा शाखा का उदय और विकास हुआ.
आयुर्वेद के प्रति दुष्प्रचार क्या है?
आयुर्वेद के संदर्भ में यह भी दुष्प्रचार किया जाता है कि, यह चिकित्सा पद्धति अनुसंधानों की दृष्टि से किसी काम की नहीं है. इस पैथी में बीमार व्यक्ति को स्वस्थ बनाने की शक्ति नही है. बल्कि सही मायन ने में देखा जाए तो आयुर्वेद काफी गहन अनुसंधानों से बनी चिकित्सा पद्धति है. पिछली कई सदियों ने इस चिकित्सा पद्धति के ठोस प्रमाण मिले है. इसलिए इस झूठे प्रचार पर कोई ध्यान ना दें तो बेहतर है.
किसी भी मनुष्य के शरीर में बीमारियां तब शुरू होती है, उसके शरीर में वात, पित्त और कफ इन त्रिदोषों में असंतुलन या विकृती आ जाती है. यह मूल विचार केवल हमें आयुर्वेद दिलाता है. शरीर बीमार होने पर उसपर केवल इलाज कराना यह आयुर्वेद का उद्देश्य नहीं है. बल्कि किसी का शरीर बीमार ही ना हों, इस दिशा में आयुर्वेद काम करता है. शरीर में बीमारी पैदा करने वाले मुख्य कारणों को ही नष्ट करने का काम आयुर्वेद करता है. यह इसका असली सामर्थ्य है.
कोरोना संकट और आयुर्वेद का महत्व
आज कोरोना ने पूरे विश्व में काफी तहलका मचाया हुआ है. खबरों के मुताबिक चाइना से शुरू हुई यह बीमारी काफी कम समय में पूरे विश्व में फैल चुकी है. अब तक इस बीमारी ने साढ़ेचार लाख से अधिक जिंदगियों को खत्म कर दिया है और करीब 90 लाख से अधिक लोगों को इसने अपनी चपेट में ले लिया है.
भारत में इसका काफी भयंकर रूप इस समय दिखाई दे रहा है. बड़ी-बड़ी महासत्ताएं भी आज इस अतिसूक्ष्म विषाणु के समक्ष घूटने टेकने को मजबूर हो गई है. केमिकल चिकित्सा पद्धति में अभी तक इस बीमारी पर कोई ठोस उपाय किसी को नहीं दिखाई दे रहा है.
सभी चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ केवल हमारे शरीर की रोगप्रतिकार शक्ति को बढ़ाने की सलाह दे रहे है. इसके लिए कई सारे उपाय भी बताए जा रहे है. हालांकि, रोगप्रतिकार शक्ति कम करने का कार्य यही केमिकल से बनीं दवाइयां पिछले कई वर्षों से कर रही है.
आज उसी पैथी के समर्थक हमें रोगप्रतिकार शक्ति बढ़ाने की सलाह दे रहे है. केमिकल दवाइयों के बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी यह बताने से कतरा रहे है कि, रोगप्रतिकार शक्ति कम करने वाला मुख्य स्रोत यही दवाइयां है. लेकिन आयुर्वेद सदियों से मनुष्य के शरीर और मन को स्वस्थ रखने का कार्य कर रहा है. इसमें उसे काफी सफलता भी मिली है. फिर भी आयुर्वेद के प्रति झूठा प्रचार किया जाता है.
जैसा कि हमने उपर देखा कि, आयुर्वेद मनुष्य के शरीर को स्वस्थ रखने का कार्य करता है और किसी स्वस्थ व्यक्ति को कोरोना होने का खतरा काफी कम रहता है, यह बात अब विश्व के कई बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी कर रहे है. ऐसे में कोई यह कहेगा कि, आयुर्वेद का कोई महत्व नहीं है तो व पूर्णतया मूर्खता की बात होगी.
आयुर्वेद मनुष्य के शरीर की सिर्फ बीमारियां भगाने का कार्य नहीं करता, बल्कि बीमारियां उसके शरीर में ना पनपे इस दिशा में कार्य करता है. इसलिए कोरोना के इस गंभीर संकटकाल में जहां केमिकल दवाइयों की मर्यादाएं स्पष्ट हो गई है, वहीं आयुर्वेद का महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया है. केवल आवश्यकता है हमें आयुर्वेद के प्रति हमारी भ्रांतियों को दूर करने और इसमें ज्यादा से ज्यादा विश्वास जगाने की.
आयुर्वेद को अनुसंधानों में अनुमति दें सरकार
आयुर्वेद एक प्रमाणित चिकित्सा पद्धति होने के बावजूद भी सरकारी स्तर पर इस चिकित्सा पद्धति के प्रति काफी उदासीनता दिखाई देती है. आज आयुर्वेद के डॉक्टर्स को काफी सीमित तौर पर काम करना पड़ता है. सरकार की ओर से केमिकल दवाइयों के इस्तेमाल को काफी ज्यादा तरजीह दी जाती है. लेकिन इस देश में अनुसंधानित हुई आयुर्वेद आज एक दुय्यम चिकित्सा पद्धति बन बैठी है.
आयुर्वेद के डॉक्टरों पर काफी सारे प्रतिबंध लगे हुए है. आज के कोरोना संकट के दौर में आयुर्वेद का महत्व कई गुना बढ़ गया है. ऐसे में सरकार की ओर से और ज्यादा पहल आयुर्वेद के संदर्भ में होनी जरुरी है.
इसके लिए आयुर्वेद को और ज्यादा मुक्त और अनुसंधानाभिमुख करने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता है. इस दिशा में काम किया गया तो देश के लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा. सरकार को इस दिशा में पहल करनी आवश्यक है.
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