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How can 90% of Diseases be cured with just one Therapy? Is this possible?

इस एक थेरेपी से 90% बीमारियाँ कैसे ठीक? 

क्या ये संभव हैं?

How can 90% of Diseases be cured with just one Therapy


ज़रा सोचिए, अगर मैं आपसे कहूँ कि आपके लिवर में जमा वो सालों पुरानी गंदगी, जो आपको हर दिन थका हुआ और बीमार महसूस करा रही है, उसे सिर्फ तीन दिनों में साफ किया जा सकता है? 

वो भी बिना किसी महंगी दवा के. ये कोई मज़ाक नहीं, बल्कि डॉ. पियूष सक्सेना की उस वायरल क्लींजिंग थेरेपी का दावा है, जिसने पूरे भारत में हेल्थ को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है.

इंटरनेट पर अनगिनत लोग इसे आज़माने और इसके हैरान करने वाले नतीजे शेयर करने का दावा कर रहे हैं. कुछ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि इससे गॉल ब्लैडर की पथरी बिना ऑपरेशन के निकल गई, सालों पुराना डायबिटीज़ रिवर्स हो गया और यहाँ तक कि हार्ट की बीमारियाँ भी ठीक हो गईं.

लेकिन क्या यह सच हो सकता है? 

क्या वाकई एक अकेली थेरेपी 90% बीमारियों का इलाज कर सकती है? 

आज इसी चमत्कारी थेरेपी की परतें खोलते हैं, इसके दावों की सच्चाई जानते हैं और इसके पीछे का साइंस भी समझते हैं.

क्लींजिंग थेरेपी को समझने के लिए टॉक्सिन्स को समझना जरुरी हैं. 

बीमारी में टॉक्सिन्स की कितनी भूमिका होती है?

Truth About Toxins & Health

आज इतनी सारी बीमारियाँ क्यों बढ़ रही हैं?

डायबिटीज़, फैटी लिवर, थकान, स्किन प्रॉब्लम, हार्मोन इम्बैलेंस…

अक्सर लोग कहते हैं —

“शरीर में टॉक्सिन्स जमा हो गए हैं”

लेकिन सवाल यह है क्या सच में टॉक्सिन्स बीमारी की वजह होते हैं?
और अगर हाँ, तो कितनी?

टॉक्सिन्स क्या होते हैं?

दोस्तों, टॉक्सिन्स दो तरह के होते हैं:

1. बाहरी टॉक्सिन्स

  • प्रदूषित हवा
  • केमिकल वाला खाना
  • पेस्टिसाइड्स
  • शराब और सिगरेट
  • ज़रूरत से ज़्यादा दवाइयाँ

2. अंदर बनने वाले टॉक्सिन्स

  • खराब पाचन
  • कब्ज
  • मेटाबॉलिज़्म से बनने वाला वेस्ट
  • लगातार तनाव
  • ये सब मिलकर शरीर पर बोझ डालते हैं।

टॉक्सिन्स बीमारी कैसे बढ़ाते हैं?

जब टॉक्सिन्स ज़्यादा हो जाते हैं और शरीर उन्हें सही से बाहर नहीं निकाल पाता, तब:

1. शरीर में इन्फ्लेमेशन बढ़ता है जिससे:

  • जोड़ दर्द
  • दिल की बीमारी
  • ऑटोइम्यून प्रॉब्लम

2. इम्यून सिस्टम कमजोर होता है

  • बार-बार बीमार पड़ना
  • एलर्जी
  • थकान

3. पाचन बिगड़ता है

  • गैस
  • एसिडिटी
  • IBS

4. हार्मोन गड़बड़ाते हैं

  • थायरॉइड
  • PCOS
  • वजन बढ़ना

👉 इसलिए टॉक्सिन्स बीमारी को बढ़ावा देने वाला बड़ा फैक्टर हैं।

क्या हर बीमारी सिर्फ टॉक्सिन्स से होती है?

यह बहुत ज़रूरी बात है। और इसका उत्तर-

❌ नहीं।

हर बीमारी का कारण सिर्फ टॉक्सिन्स नहीं होते।

बीमारियों के पीछे और भी कारण हैं जैसे-

  • जेनेटिक्स
  • लाइफस्टाइल
  • इंफेक्शन
  • पोषण की कमी
  • उम्र

✔️ लेकिन हाँ,

टॉक्सिन्स एक common contributing factor ज़रूर हैं,

खासकर आज की जीवनशैली में।

👉 टॉक्सिन्स बीमारी का एकमात्र कारण नहीं

👉 लेकिन बीमारी को बढ़ाने वाला बड़ा कारण ज़रूर हैं खासकर लिवर और हार्ट से जुडी गंभीर बीमारियां. 

क्या आज के समय में हमारा शरीर 100% डिटॉक्सिफाई कर रहा है?

क्या आज के समय में लिवर 100% डिटॉक्सिफाई कर रहा है?

सैद्धांतिक रूप से: हाँ

मानव शरीर का लिवर (यकृत) किडनी,आंत, फेफड़े इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि वह खून से ज़हरीले पदार्थ (toxins) निकालता है जो दवाओं, शराब, केमिकल्स को तोड़ता है और पित्त (bile) बनाकर वेस्ट बाहर भेजता है.

स्वस्थ व्यक्ति में लिवर 24×7 डिटॉक्स करता है।

लेकिन आज के समय की समस्या

आज के आधुनिक जीवन में 100% प्रभावी डिटॉक्स हर व्यक्ति में नहीं हो पा रहा, इसके कारण:

1) ज़रूरत से ज़्यादा टॉक्सिन लोड आज हम रोज़ सामना करते हैं:

प्रोसेस्ड फूड्स, रिफाइंड शुगर, अल्कोहल, एअर पॉल्यूशन, दवाइयों का अधिक सेवन, केमिकल्स (cosmetics, plastics) का बहोत ज्यादा यूज़ इससे लिवर पर ओवरलोड पड़ता है।

2) फैटी लिवर – सबसे बड़ी रुकावट

आज NAFLD (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) बहुत आम है।

फैट जमा होने से लिवर की कोशिकाएँ सुस्त हो जाती हैं डिटॉक्स क्षमता कम हो जाती है.

ऐसे में लिवर मौजूद तो है, पर 100% एफिशिएंट नहीं।

3) जीवनशैली का असर

अगर व्यक्ति में नींद की कमी, लगातार तनाव, शारीरिक गतिविधि की कमी है, तो लिवर का रीजनरेशन (self-repair) भी धीमा हो जाता है।

🎯 निष्कर्ष (Final Answer)

लिवर में 100% डिटॉक्स करने की क्षमता होती है, लेकिन आज की जीवनशैली के कारण वह हर व्यक्ति में 100% काम नहीं कर पा रहा।

क्लींजिंग थेरेपी की जरुरत क्या हैं?

तो सबसे पहले, आखिर ये क्लींजिंग थेरेपी है क्या बला? इस थेरेपी को भारत में लोकप्रिय बनाने का क्रेडिट डॉ. पियूष सक्सेना को दिया जाता है, और उन्हें इस फील्ड का पायनियर माना जाता हैं. 

उनका सिद्धांत बहुत सीधा है: 

आज हम जिन 90% बीमारियों से जूझ रहे हैं—चाहे वो मोटापा, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, या दिल की बीमारियाँ हों—उन सबकी जड़ एक ही है: हमारे शरीर के अंगों में धीरे-धीरे जमा हो रहे ज़हरीले पदार्थ, यानी टॉक्सिन्स.

ये थेरेपी नेचुरोपैथी और आयुर्वेद के पंचकर्म जैसे सिद्धांतों से प्रेरणा लेती है. 

इसका मानना है कि हमारा शरीर एक गाड़ी है और पेट उसका इंजन. 

अगर इंजन में ही कचरा भर जाएगा, तो गाड़ी स्मूथ कैसे चलेगी? 

इसीलिए, यह थेरेपी किसी एक बीमारी का इलाज करने के बजाय, पूरे शरीर की सर्विसिंग, यानी अंदरूनी अंगों की सफाई पर ज़ोर देती है. इसमें लिवर, किडनी, आंतों और यहाँ तक कि जोड़ों की सफाई जैसी कई प्रक्रियाएँ शामिल हैं.

क्या आज के समय में लिवर 100% डिटॉक्सिफाई कर रहा है?

इस थेरेपी का सबसे ज़रूरी हिस्सा है लिवर क्लींजिंग, जिसे "मास्टर क्लीन" भी कहा जाता है. 

डॉ. सक्सेना का दावा है कि अगर सिर्फ लिवर को ही ठीक से साफ़ कर लिया जाए, तो शरीर की ज़्यादातर दिक्कतें अपने आप खत्म होने लगती हैं. 

ऐसा इसलिए क्योंकि लिवर हमारे शरीर का मेन फ़िल्टर है, जो खून साफ़ करने से लेकर ज़हरीले पदार्थों को बाहर निकालने तक 500 से भी ज़्यादा काम करता है. जब लिवर पर टॉक्सिन्स का बोझ बढ़ता है, तो उसकी काम करने की क्षमता घट जाती है, और यहीं से बीमारियों की कहानी शुरू होती है.

क्लींजिंग थेरेपी कैसे काम करती हैं?

क्लींजिंग थेरेपी कैसे काम करती हैं?


ये प्रक्रिया या तो तीन दिन के कैंप में की जाती है या फिर लोग इसे घर पर ही करते हैं. इसका सबसे मशहूर प्रोटोकॉल है लिवर और गॉल ब्लैडर क्लीन्ज़, जो लगभग 18 से 24 घंटे में पूरा होता है.

Dr. Piyush Liver Cleansing थेरेपी का प्रोसेस कुछ ऐसा होता है:

Dr. Piyush Liver Cleansing थेरेपी का प्रोसेस


पहले दिन, दोपहर के बाद कुछ भी ठोस खाना बंद कर दिया जाता है. शाम 6 बजे और रात 8 बजे, आपको पानी में एप्सम सॉल्ट (मैग्नीशियम सल्फेट) मिलाकर पीना होता है. 

कहा जाता है कि एप्सम सॉल्ट पित्त की नलियों (Bile Ducts) को चौड़ा और रिलैक्स कर देता है, ताकि उनमें फंसा हुआ कचरा आसानी से बाहर निकल सके.

इसके बाद, रात करीब 10 बजे, आता है इस प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा. 

आपको एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल और संतरे या ग्रेपफ्रूट का जूस मिलाकर एक ड्रिंक तैयार करनी होती है और उसे पीकर तुरंत लेटना होता है. 

दावा ये है कि जैतून का तेल लिवर और पित्ताशय को बड़ी मात्रा में पित्त (Bile) छोड़ने के लिए मजबूर करता है, जो अपने साथ जमा हुए टॉक्सिन्स और पथरियों को बाहर धकेलता है.

अगली सुबह, फिर से एप्सम सॉल्ट के डोज़ लिए जाते हैं. 

इसके बाद, कई बार लूज़ मोशन होते हैं, जिसमें हरे, काले या भूरे रंग के छोटे-बड़े 'पत्थर' निकल जाते है. इसे ही  पित्त की पथरी या लिवर में जमा हुआ कोलेस्ट्रॉल बताया जाता हैं.

'अद्भुत' दावे और लोगों द्वारा प्रशंसापत्र

प्रोसेस जो भी हो, इस थेरेपी को करने वालों के अनुभव चौंकाने वाले हैं. 

इंटरनेट ऐसी कहानियों से भरा पड़ा है. लोग बताते हैं कि थेरेपी के बाद वे बहुत हल्का और एनर्जेटिक महसूस करते हैं. 

सालों पुरानी कब्ज़, एसिडिटी और पाचन की दिक्कतें कुछ ही दिनों में गायब हो गईं. स्किन पर एक नई चमक आ गई और वज़न भी कम हो गया.

लेकिन दावे यहीं खत्म नहीं होते. कुछ लोग तो इससे भी बड़े चमत्कारों की बात करते हैं. 

कई मरीज़ों का दावा है कि उनकी 15-20 mm की गॉल ब्लैडर की पथरी बिना ऑपरेशन के निकल गई.

डायबिटीज़ के मरीज़ों का शुगर लेवल नॉर्मल हो गया और उनकी दवाइयां तक छूट गईं. 

डॉ. सक्सेना की किताब में तो यहाँ तक दावा किया गया है कि एक बार लिवर क्लीन्ज़ करने के बाद अगले 6 महीने तक हार्ट अटैक का खतरा भी टल जाता है.

क्या इस थेरेपी के पीछे कोई साइंटिफिक आधार है? 

"90% बीमारियाँ ठीक होने" का दावा कितना सच है?

यह डेटॉक्स थेरेपी लेने के बाद लोग बेहतर महसूस क्यों करते हैं? 

इसके पीछे कुछ वजहें हो सकती हैं:

लाइफस्टाइल में बदलाव: इस थेरेपी के दौरान लोग फास्टिंग करते हैं, हल्का खाना खाते हैं, और जंक फूड से दूर रहते हैं. ये आदतें अपने आप में सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं.

आंतों की सफाई: एप्सम सॉल्ट एक बहुत असरदार लैक्सेटिव (पेट साफ़ करने वाली दवा) है, जो आंतों को पूरी तरह से खाली कर देता है. इससे पेट फूलना, गैस और कब्ज़ में तुरंत राहत मिलती है, जिससे इंसान हल्का और बेहतर महसूस करता है.



तो आखिर में हम कहाँ पहुँचते हैं? 

डॉ. पियूष सक्सेना की क्लींजिंग थेरेपी एक दमदार आइडिया पर आधारित है - कि हमारा शरीर खुद को ठीक कर सकता है और इसका हल प्राकृतिक तरीकों में छिपा है. 

हज़ारों लोगों के अनुभव इसकी सफलता की गवाही देते हैं, और यह उन लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो मॉडर्न मेडिसिन के साइड इफेक्ट्स से निराश हैं.

हजारो लोगों के अनुभव आपको प्रेरणा दे सकते हैं.

अब मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ. क्या आपने कभी ऐसी कोई क्लींजिंग थेरेपी ट्राई की है? आपका अनुभव कैसा रहा? 

अपने विचार नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएं. लेकिन याद रखें, यह चर्चा सिर्फ जानकारी के लिए है, मेडिकल सलाह के लिए नहीं.

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