Brother, what is this secularism?
भाई, ये सेकुलरिज्म क्या होता हैं?
क्या तैमूरलंग से लेकर एजाज खान तक कोई एक ही सोच चली आ रही हैं जो भारतीय संस्कृति को नष्ट करना चाहती हैं?
कहीं इसीलिए तो मुस्लिम जनसँख्या का एकतरफा बढ़ाना कोई प्लानिंग के तहत चल रहा हैं?
कभी बुद्ध का अनुयायी रहा अफगानिस्तान, मोहेंजदारो संस्कृति का पाकिस्तान, वैदिक हिन्दू रहे बांग्लादेश का इस्लामीकरण इसी साजिश के तहत हुवा हैं?
और सबसे बड़ा सवाल ये हैं की,
अगर एजाज खान की माने, तो १४०० सालों से इस साजिश को अंजाम दिया जा रहा हैं, उसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? मुस्लिमों को मदरसों में दी जा रही कट्टर सोच या उनके धर्मग्रन्थ?
(यहाँ हिन्दू शब्द का उल्लेख किसी एक पंथ के लिए नहीं हैं. भारत में सेंकडो सालो से रह रहे उन सभी के लिए ये शब्द लागू होता हैं जो इस देश से और संस्कृति को अपना मानते हैं)
१००० सालों से उसी सोच ने यहाँ लोगो पर बर्बरता के साथ जुल्म किये हैं और शुरू से इस देश में पनपने वाली संस्कृति पर अरबों की संस्कृति को थोपना जारी हैं.
सेकुलरों की एक घिनौनी साजिश...
मगर हमारे देश के सेक्युलर एजाज खान जैसे लोगों के खिलाफ खुले-आम क्यों नहीं बोलते?
क्या ऐसे सवालों के जवाब जानबूझकर हमसे छिपाये गए. यही सेकुलरिज्म हैं क्या?
तो क्या अरब से आया हुवा यह विचार, पोटली में छुपा हुवा सांप हैं?
और इस गंभीर मुद्दे पर आँख फेरनेवाले लोग यहाँ सेक्युलर कहलाते हैं?
मगर पोटली में छुपे हुए साप के काटने के भय को उजागर करनेवालों को कम्युनल हिन्दू कहा जाता हैं.
इसीलिए आज भी वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रिय स्ववयंसेवक संघ को बदनाम करने की कोशिशें सेकुलरों द्वारा की जा रही हैं.
सच्चाई ये हैं की वीर सावरकर हो या आरएसएस वाली ये सोच १९२५ के पहले नहीं थी. हिन्दू कभी भी कट्टर नहीं थे.
जब की उसके पहले १००० सालों से मुस्लिम आक्रांताओं यहाँ की धरती को गुलाम बनाकर इस्लाम को फैलाने की कोशिशें शुरू की थी.
डॉ. इसरार अहमद (पाकिस्तानी इस्लामी धर्मशास्त्री, दार्शनिक और इस्लामी विद्वान), बताते हैं की आर एस एस और हिन्दू संगठनों का जन्म हिन्दू संस्कृति के रक्षण के लिए हुवा हैं ना की धर्म प्रसार के लिए.
क्यूंकि यहाँ हिन्दू होने का मतलब सेक्युलर बताया गया हैं. ७० सालों से एक ऐसी गुट्टी हमें पिलाई गयी हैं जिसने हमारे सोचने की क्षमता को को अपाहिज़ बना कर रखा हैं.
मगर ये याद रखो... आज हिंदुस्तान बदल रहा हैं. आनेवाले पांच सालों बाद किसी एजाज की इस देश पर इस्लाम का परचम लहराने की बात करने की हिम्मत नहीं होगी; और १० साल बाद ये देश पूछेगा
"भाई, ये सेकुलरिज्म क्या होता हैं?"
हमारे देश में विचार स्वतंत्रता हैं. हर किसी को बोलने की आजादी हैं. इसी के तहत शबाना आजमी और जावेद अख्तर जैसे लोग अपने विचारों व्यक्त करते रहते हैं. उनके विचार मुझे कभी सही लगना और कभी गलत लगना, ये भी मेरी विचार स्वतंत्रता का अधिकार हैं.
ऐसे में शबाना एक ऐसी विचारधारा में पली बढ़ी जिन विचारों को इस देश में नकारा नहीं जा सकता. मतभेद हो सकते हैं, मगर दुश्मनी नहीं. विकसित लोकतंत्र के लिए विचारों का आदान प्रदान होना जरुरी होता हैं. भले ही उससे कोई असहमत हो. उनकी और किसी की भी विचारों में अंतर होना एक जनतांत्रिक देश होने के नाते एक सहज प्रक्रिया का हिस्सा हैं. इसमें विवाद का कुछ कारण मुझे नहीं दिखाई देता.
विवाद तो तब शुरू होता हैं, जब पायल रोहतगी और एजाज खान जैसे अपरिपक्व लोग किसी गंभीर मुद्दे पर अपनी ओछी प्रतिक्रिया देते हैं.
शबाना के इंदौर में दिए हुए भाषण पर पायल रोहतगी एक विडिओ बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. जिसमें वह सारा गुस्सा शबाना पर उतरती हैं, जो की गलत हैं. क्यूंकि वह शायद नहीं जानती की ये वही शबाना हैं जिन्होंने इमाम बुखारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और बुखारी बहस करने से भाग गया था.
इस विडिओ को उत्तर देनेवाला एक और विडिओ एजाज खान नाम का कोई एक्टर हैं उसने बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया, और विवाद ने जन्म लिया. वैसे तो इसे विवाद जैसा शब्द भी छोटा लगता हैं.
पायल रोहतगी को जवाब देते हुए 'सी' ग्रेड अभिनेता अजाज़ खान ने सोशल मीडिया पर जो जहर फैलाया हैं उसको देखते हुए यही लगता हैं की आखिर सांप पोटली से बाहर आ ही गया.
अपने वीडियो में ये बंदा कह रहा हैं की एक दिन पूरे भारत पर इस्लाम की हुकूमत होगी. जिसके लिए वह क़ुरआन का हवाला दे रहा हैं.
क्या आप जानते हो, इस देश पर इस्लाम की हुकूमत करने का
मतलब क्या हैं?
मतलब निकालने फिर अतीत में झाँकने की जरुरत तो पड़ेगी ही!
एजाज खान जैसे लोग यहाँ की बहुसंख्यक आबादी हिन्दुओं को अगर मुसलमान बनाना चाहती हैं, तो इसका मतलब यहाँ की हजारो साल की सभ्यता को नष्ट करना होता हैं.
कहीं एजाज खान भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए मुसलमानों को उकसा तो नहीं रहा हैं?
क्या यही तो गजवा ए हिन्द हैं? भारत में रहकर ग़ज़वा-ए-हिन्द की सोच रखना कितना खतरनाक सिद्ध हो सकता हैं?
इस वीडियो को पूरा देखें
कहीं इसीलिए तो मुस्लिम जनसँख्या का एकतरफा बढ़ाना कोई प्लानिंग के तहत चल रहा हैं?
कभी बुद्ध का अनुयायी रहा अफगानिस्तान, मोहेंजदारो संस्कृति का पाकिस्तान, वैदिक हिन्दू रहे बांग्लादेश का इस्लामीकरण इसी साजिश के तहत हुवा हैं?
और सबसे बड़ा सवाल ये हैं की,
अगर एजाज खान की माने, तो १४०० सालों से इस साजिश को अंजाम दिया जा रहा हैं, उसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? मुस्लिमों को मदरसों में दी जा रही कट्टर सोच या उनके धर्मग्रन्थ?
अगर इन सारे सवालों को जवाब जानोगे तो हिन्दुओं, तुम्हे ऐसी मुद्दों पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा...!
(यहाँ हिन्दू शब्द का उल्लेख किसी एक पंथ के लिए नहीं हैं. भारत में सेंकडो सालो से रह रहे उन सभी के लिए ये शब्द लागू होता हैं जो इस देश से और संस्कृति को अपना मानते हैं)
१००० सालों से उसी सोच ने यहाँ लोगो पर बर्बरता के साथ जुल्म किये हैं और शुरू से इस देश में पनपने वाली संस्कृति पर अरबों की संस्कृति को थोपना जारी हैं.
सेकुलरों की एक घिनौनी साजिश...
मगर हमारे देश के सेक्युलर एजाज खान जैसे लोगों के खिलाफ खुले-आम क्यों नहीं बोलते?
क्या ऐसे सवालों के जवाब जानबूझकर हमसे छिपाये गए. यही सेकुलरिज्म हैं क्या?
तो क्या अरब से आया हुवा यह विचार, पोटली में छुपा हुवा सांप हैं?
और इस गंभीर मुद्दे पर आँख फेरनेवाले लोग यहाँ सेक्युलर कहलाते हैं?
मगर पोटली में छुपे हुए साप के काटने के भय को उजागर करनेवालों को कम्युनल हिन्दू कहा जाता हैं.
इसीलिए आज भी वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रिय स्ववयंसेवक संघ को बदनाम करने की कोशिशें सेकुलरों द्वारा की जा रही हैं.
सच्चाई ये हैं की वीर सावरकर हो या आरएसएस वाली ये सोच १९२५ के पहले नहीं थी. हिन्दू कभी भी कट्टर नहीं थे.
जब की उसके पहले १००० सालों से मुस्लिम आक्रांताओं यहाँ की धरती को गुलाम बनाकर इस्लाम को फैलाने की कोशिशें शुरू की थी.
डॉ. इसरार अहमद (पाकिस्तानी इस्लामी धर्मशास्त्री, दार्शनिक और इस्लामी विद्वान), बताते हैं की आर एस एस और हिन्दू संगठनों का जन्म हिन्दू संस्कृति के रक्षण के लिए हुवा हैं ना की धर्म प्रसार के लिए.
अब ये जरूर सोचें क्या हिन्दुओं को के साथ षड्यंत्र कर मानसिक गुलाम बना रखा हैं?
अगर जवाब हाँ हैं तो अपने आप को बदलो और एजाज जैसे पिल्लो को सबक सीखने की ठान लो. उन्हें भी करारा जवाब दो जो वीर सावरकर और राष्ट्रिय स्ववंसेवक संघ का अपमान करते हैं.
अफगानिस्तान के गजनी मे शहर के बाहर एक बड़ा चौक है,उसमे बने एक चबूतरे पर हिंदू औरतो की नीलामी हुई थी,उसी स्थान पर इस याद को मुसलमानो ने एक स्तम्भ बनाकर आज भी संजोकर रखा है,जिसमे लिखा है— Pushpendra Kulshrestha (@Nationalist_Om) October 3, 2019
दुख्तरे हिन्दोस्तान : नीलामे दो दीनार
अर्थात यहाँ हिन्दुस्तानी औरते दो-दो दीनार मे नीलाम हुई। pic.twitter.com/6IDPoSp4bm
लिबरल मुसलमान चुप क्यों हैं?
मुस्लिम कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाने वाले आरिफ मोहम्मद खान साहब जैसे काफी कम लोग हैं. उनको मैं धन्यवाद देता हूँ. मगर २२ करोड़ की आबादी में कुछ हजार लोग ऐसे होंगे.
अब इस लेख को गलत जानकारी फैलने वाला और सही इस्लाम ये नहीं हैं ऐसी टिप्पणियां करने वाले लाखो लिबरल मुसलमान मिल जाएंगे... लेकिन यहाँ उठाये गए मुद्दों को गलत सिद्ध करनेवाले नहीं मिल सकते.
लिबरल मुसलमान की चुप्पी क्या कहती हैं?
जो चुप हैं, या तो वह एजाज जैसे लोगों का (मूक) समर्थन कर रहे हैं, या तो वह कट्टर मुसलमानो से डर के मारे नहीं बोलते.
आज इसी देश में लिबरल मुसलमान सच बोल सकता हैं. जहाँ शरीया या ईश निंदा जैसे कानूनों को लागू किया गया हैं, वहां सच बोलने वाले मुसलमानों को जीने अधिकार नहीं हैं. जिसकी कई मिसालें पाकिस्तान में मिल सकती हैं.
लिबरल मुसलमानो का चुप रहना उनके लिए ही घातक सिद्ध हो सकता हैं. तबरेज अंसारी के लिए रास्ते पर उतर सकते हो तो एजाज खान के खिलाफ क्यों नहीं? क्यों एजाज खान के खिलाफ हर जगह मुसलमान ही एफआयआर दाखिल नहीं करते?
क्या लिबरल मुसलमान अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश का इतिहास नहीं जानते?
ये ऐसे दो देश हैं जो कट्टर इस्लामिक विचारधारा को नकारने पर मजबूर हो गए और आज दोनों जगह सेक्युलर सरकार हैं. मगर कट्टरता से सेकुलरिज्म की ओर बढ़ने की उनके सफर में कई हजार लिबरल मुसलमानों को अपने जान की आहुति देनी पड़ी.
क्या भारत को पाकिस्तान बनाना चाहते एजाज़ खान जैसे लोग?
क्या भारत को पाकिस्तान बनाना चाहते एजाज़ खान जैसे लोग?
See this Pakistani Mentality
Pakistani mentality: “My wife wore clothes that I didn’t like, so I beat her up, cut her hair and then poured acid on her face. You would have done the same thing.”— Ashraf Baloch اشرف بلوچ🏳 (@ASJBaloch) October 2, 2019
Reporter: No, I wouldn’t have done the same thing. pic.twitter.com/vVemc79YkR
क्या सोये हुए हिन्दू और सोया हुवा लिबरल मुसलमान गहराई में डूबने वाली एक ही नैय्या में सवार हुए हैं?
मुझे लगता हैं की यहाँ का लिबरल मुस्लिम तभी हार गया था जब शाहबानो केस में राजीव गाँधी ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला ख़त्म कर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विचारधारा को हवा दी थी और तुम लोग चुप रहे थे. सवाल ये हैं की कब तक चुप रहोगे?
एजाज खान की औकात क्या हैं?
पीछले वर्ष इस 'सी' ग्रेड एक्टर को ड्रग्स रखने के इल्जाम में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था. ऐसे नशेड़ी, महिलाओं के प्रति गन्दी सोच रखनेवाले और ४० करोड़ मुसलमानों को रस्ते पर उतारकर देश को बंद करने की बात करनेवालों की वीडियोस को U tube पर हजारो लाइक्स का रहस्य क्या हैं?
क्यूंकि यहाँ हिन्दू होने का मतलब सेक्युलर बताया गया हैं. ७० सालों से एक ऐसी गुट्टी हमें पिलाई गयी हैं जिसने हमारे सोचने की क्षमता को को अपाहिज़ बना कर रखा हैं.
मगर ये याद रखो... आज हिंदुस्तान बदल रहा हैं. आनेवाले पांच सालों बाद किसी एजाज की इस देश पर इस्लाम का परचम लहराने की बात करने की हिम्मत नहीं होगी; और १० साल बाद ये देश पूछेगा
"भाई, ये सेकुलरिज्म क्या होता हैं?"
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