Is the media spreading ideological terrorism in India? (Hindi)
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26 जनवरी 1950 को भारत देश एक संप्रभू लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया. तब बताया गया था कि, इस देश का लोकतंत्र चार स्तंभों पर खड़ा है. जिसमें विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका यह तीन स्तंभ थे, जबकि चौथा स्तंभ था मीडिया या पत्रकारिता.
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के तौर पर पत्रकारिता को इसलिए रखा गया, क्योंकि बाकी तीनों ही स्तंभ अपना-अपना काम उचित तौर पर कर रहे है या नहीं इसका ठोस और सच्चाई से ओतप्रोत विश्लेषण पत्रकारिता कर सके. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से मीडिया काम कर रहा है, यह लगता है कि, पूंजीवाद की दिमक ने इस चौथे स्तंभ को पूरी तरह से खोखला कर दिया है.
देश में एक वक्त था, जब देश के रसूखदार सत्ताधारी और कोई वरिष्ठ अधिकारी. सभी भारत की इमानदार पत्रकारिता से खौफ़ खाया करते थे. जब-जब सच्चाई और इमानदारी से पत्रकारिता ने अपनी आवाज बुलंद की, उस आवाज से सत्ता के गलियारे थरथराने लगते थे, कुर्सियां हिलने लगती थी और कईयों को तो सत्ता से बेदखल भी होना पड़ता था.
देश की तटस्थ पत्रकारिता सत्ता में बैठे जो लोग नतमस्तक होते थे, आज मीडिया ने उन्हीं के सामने अपने आप को पूरी तरह से अत्मसमर्पण कर दिया है, ऐसी गंभीर स्थिति इस समय दिखाई दे रही है. भारत का पूरा तो नहीं, लेकिन ज्यादातर मीडिया का हिस्सा आज पूंजीवाद के विषैले आलिंगन में इस तरह समा गया है कि, उसके जीवित होने पर भी अब आशंका आने लगी है.
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वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से ही देश के मीडिया ने (कुछ को छोड़कर) ऐसी पूंजीवादी करवट ली है कि, देश के ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को घेरने की बजाय सरकार के जनविरोधी फैसलों को भी जनता के हक में बताने का प्रयास किया जा रहा है. बावजूद इसके जिन फैसलों की जनता पर कड़ी मार पड़ती है, उन मुद्दों से जनता का ध्यन भटकाने का काम हो रहा है.
जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने के लिए मीडिया के हाथ सबसे बड़ा हथियार लगा है और वो है पाकिस्तान. पिछले करीब 15 दिनों से देश के बड़े-बड़े मीडिया हाऊस पाकिस्तान के संदर्भ में इतनी खबरें, प्राईम-टाईम और डिबेट चला रहे है, जिससे लगता है कि हम हमारे देश का चैनल देख रहे है या पाकिस्तान के.
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बेवजह पाकिस्तान के लोगों को डिबेट में लाया जा रहा है, जोकि आदतन और व्यावसायिक भारत विरोधी होते है. वे भारत के खिलाफ जहर के अलावा कुछ भी उगल ही नहीं सकते, क्योंकि उन्हें बचपन से ही भारत के खिलाफ नफरत सिखाई जाती है. डिबेट में आए हमारे देश के पैनलिस्ट बेवजह ही दुश्मनों के मंतव्य पर अपना खून खौलाते है और गला फाड़कर चिल्लाते हुए पाकिस्तानी पैनलिस्टों को काऊंटर करते है.
भारतीय मीडिया द्वारा चलाए जा रहे इस कानफाड़ू प्रोग्राम की अग्नि में देश की जनता के कई सारे ज्वलंत मुद्दे स्वाहा होते जा रहे है. ऐसा लग रहा है कि, भारत की इकलौती समस्या अब केवल पाकिस्तान ही बचा है. अगर पाकिस्तान खत्म हो जाएगा तो देश में एक भी समस्या बाकी ही नहीं रहेगी.
कोई इन्हें कैसे बताएं कि, पाकिस्तान खुद के द्वारा लगाई गई आतंकवाद की अग्नि में जलकर भस्म होन वाला है. उसने आतंकवाद का जो जहर भारत, अफगानिस्तान समेत पूरे विश्व में फैलाया है, वह विष ही आज उसके लिए नासूर बन गया है, तो तील-तील कर पाकिस्तान को मौत की ओर ले जा रहा है. पाकिस्तान अपनी कुकर्मों के कारण ही खत्म होने की कग़ार पर पहुंच गया है.
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हमें पाकिस्तान की इतनी ज्यादा चिंता करने की जरुरत इसलिए नहीं है कि, दुनिया के सारे विशेषज्ञ भी अब यह मानने लगे है कि, पाकिस्तान की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और जल्द ही पाकिस्तान दुनिया के नक्शे से मिटने वाला है. पाकिस्तान के इस हश्र की दुनिया के एक ही घटक को चिंता है और वो है भारत का मीडिया.
भारत के मीडिया की एक और खासियत है. ज्यादातर मीडिया चैनल्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महिमामंडन में लीन हो गए है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस तरह से प्रोजेक्ट किया जा रहा है, जैसे कि वह भारत के अब तक के इकलौते मसिहा है. वे जो भी करेंगे देश के भले के लिए ही करेंगे और उनके किसी भी काम पर सवाल खड़े करना देशद्रोह ही है. देश का मीडिया जैसे अपना आद्यकर्तव्य यानी सत्तापक्ष की गलतियों को उजागर करना पूरी तरह से भूल गया है.
बार-बार मीडिया पर केवल यही दिखाया जा रहा है कि, आज पाकिस्तान जो दुनिया में अलग-थलग पड़ता जा रहा है, वह केवल नरेंद्र मोदी की कूटनीति का परिणाम है. हालांकि यह बात उतनी सच भी नहीं है. पाकिस्तान केवल अपनी करतूतों के कारण ही दुनिया में अलग-थलग हो रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिमा को भुनाने में मीडिया इतना ज्यादा आगे बढ़ गया है कि, जब जब कोई विपक्ष का नेता नरेंद्र मोदी सरकार के जनविरोधी फैसलों के संदर्भ में सवाल पूछता है, तो खुद मीडिया के लोग ही उसे देशद्रोही करार दे देते है और आप पाकिस्तान के नेताओं की भाषा में बात करने का आरोप उसके मत्थे मढ़ देते है.
हाऊड़ी मोदी कार्यक्रम को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में इतना ज्यादा हाईप तैयार किया गया, जैसे कि नरेंद्र मोदी पाकिस्तान और अमरीका के खिलाफ युद्ध जितकर लौटे हैं. उनके इस दौरे से पूरे देश में अच्छे दिन आने वाले है. देश से गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, महिला अत्याचार खत्म ही होने वाले हैं. उन्हें विश्वविजेता की खोखली उपाधि से भी मीडिया द्वारा नवाजा गया.
मीडिया के इन अर्धशिक्षित भोंपूओं को यह बताने की जरुरत आ गई है कि, देश के लोकतंत्र का आप केवल एक स्तंभ हो. इसी तरह का एक स्तंभ न्यायपालिका भी है. केवल उसे ही न्याय करने का अधिकार है. मीडिया को आज तक न्यायलय की जगह नहीं दी हई है. लेकिन मीडिया के यह भोंपू स्वयंघोषित न्यायाधीश बन बैठे है. यह लोकतंत्र के लिए काफी घातक है.
यह मीडिया ना ही सत्तापक्ष को या नरेंद्र मोदी को पूरी तरह से विफल हो चुकी नोटबंदी पर सवाल पूछता नहीं है. साथ ही जीएसटी से चौपट हुए देश के कारोबर पर सवाल नही पुछता है, विदेश से काला धन कितना आया इस पर सवाल नहीं पुछता है, देश में हो रहे लिंचिंग पर सवाल पुछता नहीं है, खस्ताहाल हो रही देश की अर्थव्यवस्था पर सवाल नहीं पुछता है, देश में एवरेस्ट शिखर पर पहुंची बेरोजगारी पर सवाल नहीं पुछता है, महिला सुरक्षा को लेकर सवाल नहीं पुछता है, स्वामी चिन्मयानंद और भाजपा विधायक कुलदीपसिंह सेंगर जैसे बलात्कारियों के संदर्भ में कोई सवाल नहीं पुछता, देश पर बढ़ते कर्ज, देश में बढ़ते निजिकरण के खतरे, देश के डूबते बैंक और लोगों का डूबता पैसा, इस संदर्भ में कोई सवाल नहीं पुछा जाता.
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देश में बड़ी संख्या में मौजूद ठेका मजदूर, दिहाड़ी मजदूर, खेत मजदूर औक किसानों, दलितों, आदिवासीयों, महिलाओं की समस्याएं जैसे ब्रह्मांड में विलुप्त हो गई हों, इस तरह का आभास निर्माण किया जा रहा है. लेकिन विकास से कोसो दूर देश के इन तबकों में फैले क्रोध को उजागर नहीं किया गया, तो आने वाले समय में यही क्रोध ज्वालामुखी का रूप लेकर फूट सकता है.
आज देश का मीडिया केवल विपक्ष के लोगों को, जेएनयू में पढ़ने वाले छात्रों, देश की गंभीर समस्याओं पर सवाल पूछने वाले बुद्धिजिवी, कलाकारों को देशद्रोही साबित करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है. पहली बार ऐसा हुआ है कि, देश का मीडिया एक राजनीतिक पार्टी की तरह अपना अलग एजेंडा लेकर काम कर रहा है.
देश के मीडिया का इतना घिनौना और बदसूरत चेहरा आज तक कभी भी इतना सामने नहीं आया था. कुछ एंकर तो मोदी भक्ति के नशे में इतना चूर हो गए है, कि अपना नाम बताते समय भी मोदी बताते है. किसी व्यक्ति के प्रति बने पागलपन ही यह तो हद ही चुकी है.
मीडिया की यह स्थिति काफी भयावह दिखाई दे रही है. यह एक तरह से देश के लोगों के साथ धोखा है. क्योंकि जनता के असल मुद्दों पर सत्तापक्ष पर दबाव बनाना और जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करना यह मीडिया का प्रमुख काम होता है. लेकिन आज इससे बिल्कुल उल्टा हो रहा है. यह बौद्धिक आतंकवाद से कम नहीं है.
भारत की जनता ने आज तक पंजाब-कश्मीर के आतंकवाद के लेकर देश के रेड कोरिडोर में चल रहे नक्सलवाद के आतंकवाद के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी है. लेकिन अब इस जनता को मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे बौद्धिक आतंकवाद के खिलाफ भी यल्गार छेड़ना होगा. वर्ना देश की आने वाली पीढ़ियों को यही बौद्धिक आतंकवाद बौद्धिक और तर्कवाद की दृष्टि से अपाहिज बना सकता है.
अगर ऐसा हुआ तो इस देश में नागरिक नहीं बल्कि केवल गुलाम पैदा होंगे, जोकि चंद मुठ्ठीभर ताकतवर लोगों के शोषण के लिए तैयार रहेंगे. इसे रोकने के लिए मीडिया के आक्रमण के खिलाफ जनता को एकजूट होकर अपनी समस्याओं के लिए एक नई लड़ाई की शुरुआत करनी होगी.
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