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Ayurveda: One of the Best Ancient Indian Scriptures (Hindi)

आयुर्वेद: एक बेहतरीन प्राचीन भारतीय शास्त्र


आज के जमाने में आयुर्वेद की है आवश्यकता


आयुर्वेद के संदर्भ में यह समझा जाता है कि, यह केवल काढ़ा, चूर्ण, भस्म या आसव के स्वरूप में ही होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. आयुर्वेद पूरी तरह से अष्टांग और परिपूर्ण होता है. बालरोग, स्त्रीरोग, गर्भिणी परिचर्या शस्त्रकर्मे, कान-नाक-गले की बीमारियां, बुढ़ापे की विष चिकित्सा इन अंगों का विचार आयुर्वेद में होता है.  आइये, इस आर्टिकल में आयुर्वेद की आवश्यकता को समझते हैं आयुर्वेद शिक्षा मंडल, पुणे के सचिव प्रा. डॉ. म. ह. परांजपे से. 



सैकड़ों या हजारो वर्ष पहले जब दुनिया के कई जगहों पर संस्कृति का उदय भी नहीं हुआ था, उस समय भारत में आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का काफी सारा विकास हो चुका था. उस समय चरक, सुश्रुत और वाग्भट्ट यह बृहद्त्रयी अपने ज्ञान का जलवा बिखेर रहे थे. उनके इस ज्ञान से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए लोग स्वस्थ जीवन जी रहे थे. अष्टांग आयुर्वेद उस समय सभ के स्वास्थ्य रक्षण के लिए परिपक्व हो चुका था. इसीसे हमारे देश के आयुर्वेद की महानता का पता चलता है.

प्रकृति और मनुष्य सात्मता


जैसे-जैसे प्रकृति में बदलाव होता है, उसी हिसाब से हमारे शरीर में बदलाव होते रहते है. यानी किसी भी व्यक्ति के शारीरिक विकास पर वहां के पर्यावरण का काफी ज्यादा प्रभाव रहता है. इसीके चलते मनुष्य जिस पर्यावरण में पैदा होता और विकसित होता है वहां की प्रकृति, खान-पान की चीजें, औषधियां उसके लिए काफी अनुकुल होती है. यही प्रकृति का नियम है.

अलग-अलग ऋतु में उगने वाली सब्जियां, फल या खाद्यसंस्कृति की कोई भी वस्तू मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से पोषक होती है. ऋतु के हिसाब से हमारे शरीर के लिए जो रसायन आवश्यक होता है, वह वनस्पति उस ऋतु में उत्पन्न होती है. यही बात आयुर्वेद को खास बनाती है, क्योंकि आयुर्वेद में बनी सभी औषधियां वनस्पतियों पर ही निर्भर करती है. बाकी चिकित्सा शास्त्रों में दवाईयां कृत्रिम तरीके से तैयार की जाती है या फिर उन्हें आयात किया जाता है.

आयुर्वेद का प्रयोजन


शरीर में मौजूद धातुओं की समानता को कायम रखते हुए शरीर को स्वस्थ रखना या शरीर में तैयार हुई धातुओं की असमानता को कम कर शरीर को स्वस्थ बनाना, यह आवश्यक कार्य आयुर्वेद के द्वारा किया जाता है. यही इसका खास प्रयोजन भी है. इस पूरी प्रक्रिया के लिए आयुर्वेद में तीन भागों में स्कंध वर्णन किया गया है. यही त्रिस्कंध यानी आयुर्वेद है.

आयुर्वेदिक औषधियों का इलाज


आयुर्वेदिक औषधियों के इस्तेमाल में पूरे शरीर को स्वस्थ बनाने का विचार होता है. मरीज का स्वास्थ्य, उसके शरीर में फैला हुआ विकार, उम्र, लिंग, पसंद-नापसंद इनका विचार इसमें किया जाता है. इसीके चलते आयुर्वेद में किसी एक बीमारी के लिए एक खास दवाई नहीं होती. यानी आयुर्वेद की किसी एक औषधि से भले ही कोई बीमारी दूर होती हो, लेकिन उस बीमारी के बाकी शरीर के लक्षणों पर भी काम किया जाता है.

आयुर्वेद का शाश्वत तथ्य


आयुर्वेद एक शाश्वत चिकित्सा पद्धति है. इसके इसमें अनादित्व, स्वभावसिद्धत्व और भावस्वभावनिस्यत्व यह तीन प्रमुख लक्षण है. अच्छा स्वास्थ्य रखने का कार्य जीवित शरीर पर किया जाता है. लेकिन शरीर का जीवितत्व होता है आत्मा. हालांकि आत्मा पर कोई खास उपाययोजना नहीं करनी पड़ती, लेकिन मन और शरीर को सुदृढ रखने का काम जरुरी होता है. क्योंकि मन और शरीर में विषमता आने पर विकारों की शुरुआत होती है. मन और शरीर में समानता रख स्वास्थ्य प्राप्त करने के कुल 7 सिद्धांत है.

1) लोकपुरुष साम्य सिद्धांत,
2) पंचमहाभूत, त्रिदोष सिद्धांत,
3) दोष धातु मल सिद्धांत,
4) सामान्य विशेष सिद्धांत,
5) द्रव्यगुण कर्म सिद्धांत,
6) रस-वीर्य विपाक सिद्धांत और
7) स्वास्थ्य - विकृति सिद्धांत.

अष्टांक आयुर्वेद की व्याप्ति


आयुर्वेद के संदर्भ में यह समझा जाता है कि, यह केवल काढ़ा, चूर्ण, भस्म या आसव के स्वरूप में ही होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. आयुर्वेद पूरी तरह से अष्टांग और परिपूर्ण होता है. बालरोग, स्त्रीरोग, गर्भिणी परिचर्या शस्त्रकर्मे, कान-नाक-गले की बीमारियां, बुढ़ापे की विष चिकित्सा इन अंगों का विचार आयुर्वेद में होता है.

रोग-प्रतिकारक शक्ति में बढ़ोतरी


आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में जब से एन्टीबायोटिक्स पर अनुसंधान हुआ तब बाकी दवाइयों का इस्तेमाल काफी कम हुआ. लेकिन यह एन्टीबायोटिक्स जैसे विषैले द्वव्यों के ज्यादा इस्तेमाल से इसके गंभीर परिणाम शरीर पर होने लगे. जिन विषाणूओं से बचने के लिए इन एन्टीबायोटिक्स का निर्माण किया गया वे और भी पॉवरफुल हो गए.

उन पर इन दवाइयों का असर होना बंद हो गया. आयुर्वेद बाकी चिकित्सा पद्धतियों की तरह काम नहीं करता. यह जंतुओं का नाश करने की बजाय इन जंतुओं से शरीर में होने वाली बीमारियों से बचाता है, जिसस हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है.

नहीं है कोई साइड इफेक्ट


आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में दवाइयों के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होते. जो भी असर हमारे शरीर पर दिखता है वह उस दवाई का गुणधर्म होता है. इसलिए आयुर्वेदिक दवाइयों के सेवन से शरीर में कोई दूसरी बीमारियां उत्पन्न नहीं होती. बल्कि किसी एक दवाई से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है, जिससे दूसरे रोगों पर इलाज संभव होता है.

विदेश में बढ़ रहा आयुर्वेद


आयुर्वेद में निहित ज्ञान अब पूरे विश्व में फैलता जा रहा है. आज विदेश में योग और आयुर्वेद के महत्व को लोग मानने लगे है. देश के कई सारे प्राध्यापकों को आज विभिन्न देशों में मौजूद शिक्षा संस्थानों में बुलाया जा रहा है और उनसे आयुर्वेद की जानकारी ली जा रही है.

इतना नहीं बल्कि वे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से अपना इलाज भी करा रहे है. इसी कारण से आयुर्वेद का महत्व अधोरेखित होता है. हमें जरुरत है केवल आयुर्वेद जैसी परिपूर्ण चिकित्सा पद्धति पर विश्वास रखने की. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से इलाज कराएं और अपने शरीर और मन को स्वस्थ बनाए.

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