Did Malala Yousafzai make Pakistan bankrupt? (Hindi)
क्या मलाला यूसफ्ज़ाई ने
पाकिस्तान को दिवालिया बना दिया?
पाकिस्तान में
लड़कियों की शिक्षा को लेकर खुंखार आतंकियों से लोहा लेने वाली मलाला युसुफज़ई को
कुछ वर्ष पहले केवल 16 वर्ष की आयु में ही विश्व के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल
पुरस्कार से नवाज़ा गया था.
मलाला के इसी असीम साहस के चलते उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ था. वह पूरी दुनिया में आतंक के खिलाफ़ लड़ने वाली वीरांगना के तौर पर पहचाने जानी लगी. उनके इस साहस के चलते पाकिस्तान में बढ़ रहे चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद का खतरनाक चेहरा दुनिया के सामने आया
.
थोथले
जेहाद के नाम पर चल रहे आतंकवाद के नापाक चेहरे से नकाब उतर गया, यह हकिकत है. मगर वही मलाला जब कश्मीर में लड़कियों की शिक्षा के विषय में चिंता जताती हैं तब
उन्हें भारतीय इंटरनेट ट्रोलर्स का सामना करना पड़ता हैं.
जब की यह एक सच्चाई हैं, की मलाला ने जिस तरह से पाकिस्तान में पोसे जाने आतंकवाद को अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर उछाला, उसी कारणों से पाकिस्तान दुनिया
से अलग थलग पड़ना शुरू हो गया था; जिसका सबसे बूरा असर
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर हुआ.
यही अर्थव्यवस्था आज ख़त्म होने के कगार पर खड़ी हैं. भारतीय ट्रोलर्स को खुश होना चाहिए की उनका शत्रु राष्ट्र आज दिवालिया बन चूका हैं, जिसमे मलाला यूसुफ़ज़ई का बड़ा अहम् किरदार रहा हैं?
अतीत में इसी मलाला के साहस
के चलते उन्हें भारत से भी काफी स्नेह मिला था. मलाला के इस पूरे साहसिक कार्य की
यहां पर चर्चा करने का प्रमुख कारण यह कि, कुछ दिन पहले उन्होंने कश्मीरी
लड़कियों की शिक्षा को लेकर एक ऐसा बयान दिया, जोकि भारत की
ज्यादातर जनता को काफी नागवार गुज़रा.
इसलिए उनके इसी बयान पर काफ़ी तीख़ी
प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त हो रही है. कश्मीर के मुद्दे को लेकर कितनी संवेदनशीलता
(या असंवेदनशीलता) हम भारतीयों में है,
इस संदर्भ में भी चर्चा होनी जरुरी है.
इस लेख
में हम मलाला का मंतव्य और इससे जूड़ी कुछ सच्चाइयों को पाठको के सामने लाने जा रहे है.
Image source: ABC News |
कुछ दिन पहले केंद्र
में स्थित एनडीए की सरकार ने पिछले सात दशकों से चले आ रहे कश्मीर को विशेष राज्य
का दर्जा देने वाली धारा 370 को रद्द करने का फैसला किया. इस फैसले के साथ ही
जम्मू-कश्मीर का दो प्रशासकीय विभागों में विभाजन किया गया. हालांकि, केंद्र सरकार का दावा था कि, इससे जम्मू-कश्मीर का विकास होगा, वहां से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा, भ्रष्टाचार मिट
जाएगा, चंद राजनीतिक घरानों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा वगैरह...
वगैरह...
इस फैसले के बाद सरकार
की ओर से जम्मू-कश्मीर की जनता खुश होने तथा कश्मीर पूरी
तरह से शांत होने का दावा किया जा रहा है. लेकिन इस फैसले के
संदर्भ में जहां कश्मीरी जनता में काफी ग़मोगुस्से का इज़हार हो रहा है, वहीं पूरे भारत वर्ष में एक राष्ट्रवाद की ऐेसी लहर बह रही है कि, इसी राष्ट्रवाद की धूंद में कश्मीर की वास्तविक स्थिति को आम भारतीयों तक
पहुंचाने में बाधाएं उत्पन्न कर रखी है.
पिछले करीब डेढ़
महिने कश्मीरी अवाम में एक क्रोध उबल रहा है, लेकिन सरकार
फौज को आगे कर उसे फौजी कार्रवाई की चादर के तले ढंकने का प्रयास कर रही है. हालांकि,
यह प्रयास कितना सफल या असफल होने जा रहा है, इसका
उत्तर तो आने वाला समय ही दे सकता है.
कश्मीर में पिछले कई दिनों से कर्फ्यु लगा
हुआ है. व्यवसाय ठप पड़ा है, स्कूल-कालेजों में जहां बच्चों
की किलकारियांना सुनाई देती थी, आज वहां पर सन्नाटा पसरा हुआ
है. बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच गई है.
ऐसी जानकारियां कुछ तटस्थ मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से सामने आ
रही है.
मलाला के
मंतव्य को लेकर विवाद की शुरुआत यहीं से होती है. इस समय कनाडा की नागरिकता हासिल
कर चुकी इस बहादूर लड़की ने कश्मीरी लड़कियों की शिक्षा को लेकर कुछ दिन पहले कहा
था कि, वह भारत की सरकार से अपील करती है कि, इस स्थिति को बदल कर कश्मीरी लड़कियों की शिक्षा को लेकर संजिदा हो जाएं,
उन्हें शिक्षा मुहैया करवाने का प्रयास करें.
मलाला का यह मंतव्य
आते ही सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद की मशाल हाथ में पकड़े कई भारतीय ट्रोलर्स, (जोकि
कश्मीरी जनता के वास्तविक हालातों की ओर अनदेखा कर चुके है), ने मलाला की खूब
खिंचाई की.
मलाला के मंतव्य को अच्छी तरह से समझने की बजाय उन्हें ही भला-बुरा बोलने लगे. नेटिजन्स ने उन्हें ट्रोल करते हुए
कहा कि, मलाला को कश्मीरी लड़कियों की शिक्षा पर चिंता जताने
की बजाय पाकिस्तानी लड़कियों पर हो रहे जुल्मो-जब्र पर फोकस करे, मलाला कश्मीर पर बयानबाजी ना करें, ऐसी मुफ्त़ की
सलाह भी इन तथाकथित राष्ट्रवादी नेटीजन्स उन्हें दे डाली.
खैर,
सोशल मीडिया पर बंदरों की तरह कुलांचे मारने वाले तथाकथित
राष्ट्रवादियों द्वारा मलाला पर टिप्पणी करने की बजाय कुछ वास्तविकताओं को ध्यान
रखकर प्रयास करते तो ज्यादा अच्छा होता.
टिप्पणी करने से
पहले कम से कम मलाला युसुफजई के उम्र का भी लिहाज इन नेटीजन्स ने नहीं किया. इन
राष्ट्रवादी भोंपूओं को शायद यह नहीं पता कि, मलाला युसुफजई
वह लड़की है, जिसने स्वात घाटी में तालिबानी आतंकियों द्वारा
लड़कियों पर लगाई जा रही पाबंदियों के खिलाफ़ जमकर आवाज उठाई थी. पाकिस्तान में
लड़कियों पर हो रहे जुल्मोजब्र को उन्होंने विदेशी मचों पर उठाया था.
पाकिस्तानी खुफिया
एजेन्सी आईएसआई, पाकिस्तानी मिलिटरी और उनके मगरीबी
(पश्चिमी) आकाओं की कृपादृष्टि के चलते
पाकिस्तान के स्वात घाटी में कुछ वर्षों से तालिबानी आतंकी काफी हावी हुए है.
यह तालिबानी आतंकी वहां लोगों पर जुल्म कर रहे है और लड़कियों की शिक्षा को
उन्होंने गैर इस्लामिक करार देते हुए लड़कियों को स्कूल भेजने वाले अभिभावको को
धमकाना शुरू किया था. लेकिन इस दहशतगर्दी के खिलाफ मलाला
युसुफजई एक चट्टान की तरह खड़ी हुई.
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उसने धमकियों के
बावजूद भी लड़कियों को पढ़ाना जारी रखा. उन्हें कई बार धमकियां दी गई, लेकिन उन्होंने अपने पैर पिछे नहीं खिंचे. इससे बौखलाए
आतंकियों ने उनके सीर पर गोली मालकर उन्हें खत्म करने का प्रयास किया था. लेकिन वह
उस जघन्य हमले के बाद भी जिंदा बच गई और उन्होंने पाकिस्तान में फैल रहे आतंकवाद
को खुलकर दुनिया के सामने रखा था.
उनके इसी प्रचार के चलते पाकिस्तान पूरी दुनिया
में आतंक की फैक्टरी के तौर पर उभरकर आया और दुनियाभर में वह आतंकवाद के मुद्दे पर
अलग-थलग पड़ा. इसी के चलते आज पाकिस्तान आर्थिक दृष्टि रसातल पर पहुंच गया है.
पाकिस्तान की बर्बादी की बुनियाद में कहीं ना कहीं मलाला के नाम भी एक ईंट लगी हुई
है.
जब वह अंतरराष्ट्रीय
मंचों पर विख्यात हुई थी और पाकिस्तान को एक्स्पोज कर रही थी, तब उन्हें भारत ही
नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने सर-आंखों पर बिठा लिया था. मलाला ने कश्मीर के संदर्भ
में मंतव्य देने से पहले भी दुनिया कई देशों का दौरा किया. मलाला ऐसे
अफ्रिकी देशों में भी गई जहां पर गृहयुद्ध की स्थिति में लड़कियों की हालत बद से
बदतर है.
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उन अफ्रीकन देशों के संदर्भ में उन्होंने कई बार आवाज उठाई. जब तक वह दूसरे देशों में लड़कियों की बदतरीन स्थिति पर बोलती रहीं,
तब तक भारत के इन तथाकथित भोंपूओं के मन में लड्डू फूट रहे थे.
लेकिन जैसे ही उनका कश्मीर में लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में
मंतव्य आया, इन तथाकथित राष्ट्रवादी भोंपूओं के सीने पर सांप
लौट गए.
धारा 370 को रद्द
करने को लेकर सरकार के फैसले का आंखें मूंदकर समर्थन करने वाले भारतीय ट्रोलर्स (या राष्ट्रवादी?) कश्मीर की
वास्तविक स्थिति से परे है. क्योंकि कि देश भर में इस मुद्दे को लेकर एक भ्रामक
स्थिति फैला दी गई है, अंधराष्ट्रवाद की लहर निर्माण की गई जिससे आम
भारतीयों तक वहां की वास्तविक स्थिति पहुंच ही नहीं रही है.
कश्मीर
को लेकर हमारे दिलों में फैलाई गई कई सारी भ्रामक बातों के चलते हमारा एक परसेप्शन
बन गया है. इसी परसेप्शन के खिलाफ अगर कोई एक शब्द भी बोल
दें, उसके प्रति हममें घृणा का भाव पैदा हो जाता है.
कश्मीर के प्रति आम भारतीयों में यह भ्रम फैला गया है कि, कश्मीर में आतंकवाद की समस्या की जड़ केवल धारा 370 ही है. यह बात भी इतनी
सही नहीं है. क्योंकि कश्मीर में धारा 370 लगाए जाने के बाद करीब 43
वर्षों तक कश्मीर में आतंकवाद का कोई इतिहास नहीं है.
कश्मीर
में आतंकवाद 1990 के बाद से शुरू हुआ है. जिसे पाकिस्तान की तरफ से प्रायोजित किया गया. पाकिस्तान
को अमरीका वर्षों तक हथियार बेचता रहा. वित्तीय मदद करता रहा.
इसी के बलबूते पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंक का खुनी खेल खेला.
इसलिए आम कश्मीरी और खास तौर पर कश्मीरी पंडितों के खून से कहीं
न कहीं अमरिका के हाथ भी रंगे हुए है.
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धारा 370 हटाने का दूसरा तर्क दिया जा रहा है, इससे कश्मीर
में व्याप्त भ्रष्टाचार कम होगा. यह तर्क भी पूरी तरह से
भ्रामक है. देश में कश्मीर को छोड़ कहीं भी धारा 370 लागू नही है. इसके बावजूद भी भ्रष्टाचार आज पूरे देश
में पाताल तक अपनी जड़ें जमाए हुए है.
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तिसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि, कश्मीर में कुछ राजनीतिक परिवारों में सिमटा सत्ता की एकाधिकारशाही खत्म हो जायेगी.
लेकिन आज घरानाशाही देशभर की सभी राजनीतिक पार्टियों में अपनी पैठ
बना चुका है.
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इन सभी वास्तविकताओं को देखते हुए कहीं भी धारा
370 के संदर्भ में दिए जाने वाले तर्क सही नहीं बैठते. लेकिन आज इस पूरे विषय पर सवाल पुछना बेईमानी हो चुका है.
सवाल पुछने वाले या सरकारी दावों के विरोध में तर्क देने वाले व्यक्ति पर सीधा
देशद्रोह का टैग लगाकर उसका पार्सल पाकिस्तान भेजने की बात कही जाती है. इसे देखते
हुए कश्मीर की समस्या को लेकर तथाकथित राष्ट्रवादी कितना असंवेदनशील है, यह दिखाता है.
धारा 370 हटाने
के फौरन बाद से पूरे कश्मीर को सरकार की ओर से छावनी में तब्दील कर दिया है.
पूरे कश्मीर में कर्फ्यु व्याप्त है. व्यापार
ठप है, टूरिज्म रसातल की ओर है, जिससे
बेरोजगारी हिमालय की ऊंची शिखरों को छू रही है, मजदूरी कर
अपने परिवार का पेट पालने वाले मजदूरों की हालत तो पुछने लायक भी नहीं बची है. कश्मीर के स्कूल-कालेज बंद है, जिससे छात्र-छात्राएं शिक्षा से महरूम हुए है.
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इसी को लेकर मलाला ने मंतव्य दिया था. इस गंभीर स्थिति को बदलने का
प्रयास करने की बजाय सरकार अपने फैसले को जस्टीफाई करने के लिए और लोगों के विरोध
को कुचलने के लिए सेना को आगे कर रही है.
इस फैसले को
राष्ट्रवाद का चोला पहनाकर आम भारतीयों को अंधराष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई गई है.
कुछ पेड़ मीडिया आईटी सेल और सरकार और सत्ताधारियों के कलमघिस्सू मीडिया अलग अलग
पोस्टस् और रिपोर्ट तैयार कर उन्हें गलत ढंग से प्रचारित कर रहे है. लेकिन इससे ना
तो कश्मीरी जनता का कोई भला होगा, ना ही आम भारतियों का.
धारा 370 के संदर्भ
में आम भारतीयों में कई सारी भ्रांतियाँ फैलाई गई है. लेकिन इसका गहराई से अध्ययन
करने के बाद ही पता चलता है कि, आखिर यह माजरा क्या है.
भारत स्वतंत्र होने के बाद
कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था. पाकिस्तान उसे हथियाना चाहता था. भारत ने जुनागढ़
संस्थान में जनमत संग्रह कर उसे भारत में जोड़ा था. कश्मीर में भी यह प्रक्रिया
आज़माने पर भारत-पाकिस्तान सहमत थे. कश्मीर की मुस्लिमबहुल जनसंख्या के चलते यह
इलाका पाकिस्तान को मिलने का विश्वास था.
लेकिन कश्मीरी जनता हर हाल में पाकिस्तान
के साथ जाना नहीं चाहती, यह बात तब उभरकर सामने आई जब पाकिस्तान के घुसपैठियें
कबाइलियों को भारतीय सेना खदेड़ रही तब कश्मीरी महिला-पुरुष हाथ में हथियार लिए
भारतीय जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे.
कश्मीरियों के दिलों में भारत के
प्रति काफी विश्वास और प्रेम का भाव था. इसीके चलते भारत ने भी यह कहा था कि, हम कश्मीर
को कभी भी हथियारों के दम पर हासिल नहीं करेंगे, बल्कि कश्मीरी जनता का रुझान
देखकर उनके साथ व्यवहार होगा. भारत के इसी रुख के चलते कश्मीर की जनता का रुझान
हमेशा ही भारत की ओर रहा है.
लेकिन कश्मीरी जनता के साथ किए गए कई वादों को
स्वतंत्रता के बाद आई सरकारों की ओर से अक्सर अनदेखी की गई. धारा 370 में निहित
उपधाराओं को विभिन्न मौकों पर कमजोर किया गया, यह एक सत्य इतिहास है जिसके साक्ष्य
आज भी मौजूद है. जरुरत है केवल इसकी जड़े खोदकर देखने की.
धारा 370 भारत और
कश्मीरी जनता के बीच एक विश्वास से भरा अनुबंध था, जिसके कारण कश्मीरी भारत के साथ
दिल से जुड़े थे. लेकिन भाजपा द्वारा संचलित केंद्र सरकार की ओर से इकतर्फा कार्रवाई करते हुए
इस अनुबंध को तोड़ दिया गया है.
इस घटना से भारत और कश्मीरी जनता के बीच जो
विश्वास का पूल बना था, उसे तोड़ दिया गया है, जिससे इसकी रोषपूर्ण प्रतिक्रिया आम
कश्मीरीयों में से उभरकर आना लाज़मी है. इस संदर्भ में कुलगाम से माकपा के चार बार
के विधायक रह चुके मो. युसुफ तारीगामी ने दो दिन पूर्व दिल्ली में प्रेस
कान्फ्रेंस कर पूरी जानकारी दी.
इसलिए मलाला युसुफजई के
मंतव्य का अंधा विरोध करने की बजाय हमें कश्मीर तथा कश्मिरीयों के दर्द को ज्यादा
समझने की आवश्यकता है. वहां की स्थिति को जल्द से जल्द सामान्य कराते हुए वहां
रोजगार बढाना जरुरी है, वहां टूरिज्म फल-फुलना चाहिए, कश्मीर में जल्द से जल्द
लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का क्रियान्वयन जरुरी है, वहां के स्कूल-कालेजों को फिर
एक बार नियमित करना होगा, कश्मीरीयों के प्रति सद्भाव को बढ़ाना होगा, क्योंकि कश्मीर
समस्या के समाधान का रास्ता केवल हमदर्दी के रास्ते से खोजा जा सकता है, ना कि
फौजी ताकद के दम पर!
Image source: Twitter |
लेकिन अंधराष्ट्रवाद की घुट्टी पी चुके भारत का मीडिया और तथाकथित राष्ट्रवादी (जिनके शरीर पर आतंकवाद से लड़ते हुए खरोंच भी नहीं आयी), इस वास्तविक स्थिति की ओर आंखें मूंदकर खड़ा हैं. पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने लाने वाले मलाला जैसे लोगों के प्रति थोड़ी उदारता दिखने का कर्तव्य हम कब निभाएंगे?
नीचे दिए गए ट्वीट्स और वीडियोस काफी हैं भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रवादियों एक जैसी सोच दिखने में.... फर्क बस आपको करना हैं.
Indians trolling Malala
#MalalaYousafzai— 𝓡𝓪𝓶𝓮𝓼𝓱 (@Ramesh_BJP) September 16, 2019
* She is an opportunist
* A wolf in a sheep skin
Why preach while in hiding, does this lady have the guts to live in Pakistan and work for women empowerment?
She and her father are known for misusing many privileges to lead a luxurious life. @Malala pic.twitter.com/jpRsby9AZ1
#MalalaYousafzai— Wicked Sunny (@wiicked_sunny) September 16, 2019
Both are hypocrite.
1.messenger of peace
2.messenger of god pic.twitter.com/rzRNE1NbGU
Malala is one of the most overrated creations of the western media! shame on u 😠😠#Malala #MalalaYousafzai #Pakistan pic.twitter.com/4vSqHwM4SL— Adarsh singh🇮🇳 (@AdarshRo45) September 15, 2019
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