क्या अमेरिका - ईरान तनाव के कारण तीसरा विश्व युद्ध होगा
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मानवी इतिहास में और रियासतों के विस्तारीकरण की मनुष्य की हवस ने आज तक इतिहास में हमने विभिन्न तरह के घातक युद्ध देखे और पढ़े है. हालांकि, यह युद्ध मानवी जीवन की एक बेहद तकलीफदेह त्रासदी रहे है, लेकिन इनमें भी विनाश की चरम सीमा हमने प्रथम और दूसरे विश्वयुद्ध में देखी थी.इन दोनों ही लड़ाईओं में लाखो ही नहीं बल्कि करोड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है, करोड़ों की तादाद में लोग घायल भी हुए है तथा देशों के परिसंपत्तियों का तो आंकलन ना करने वाला नुकसान हुआ है. दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे के कुछ अर्से बाद ही यह चर्चा शुरू हुई थी कि, अगर इस युद्ध में इतना विनाश हुआ है तो तिसरे विश्व युद्ध में शायद पृथ्वी पर मौजूद मानव जाति पूरी तरह से ही नष्ट हो जाएगी. तभी से इस तिसरे विश्व युद्ध के प्रति विभिन्न तरह के कयास और अटकलें लगाई जा रही है.
तिसरे विश्व युद्ध की संभवनाएं
Prospects of third world war
जैसा कि हमने देखा कि, तिसरे विश्वयुद्ध के संदर्भ में दूसरे विश्व युद्ध के फौरन बाद ही कयास लगाना शुरू हो चुका था, जबकि इसकी कई बार नौबत तो आईं मगर यह युद्ध अस्तित्व में नहीं आ सका. 40-45 वर्षों तक अमेरीका और रूस इन दोनों महाशक्तियों में चले भीषण शीतयुद्ध के दौरान कई ऐसे मौके आए भी कि, तिसरा विश्वयुद्ध बस अब छीड़ ही जाएगा, लेकिन यह संभावना समय-समय पर टलती रही.
लेकिन पिछले वर्षों में इरान और अमेरीका में बढ़ने वाले तनाव को देखकर शायद इसकी अटकलें भी लगाई जा रही है कि, शायद इस समय विश्व तिसरे विश्वयुद्ध के ज्वालामुखी के मुहाने खड़ा है. कयासों में ही सही लेकिन अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो शायद हे मानव जाति का अंतिम युद्ध भी हो सकता है. क्योंकि इस विश्वयुद्ध से निकलने वाले परिणाम इतने विनाशकारी हो सकते है कि, युद्ध और उसके बाद मानव जाति ही नष्ट हो सकती है.
ईरान - अमेरिका तनाव के कारण
Reason behind Iran and America tension
जैसा कि हमने देखा कि, पिछले कुछ महिनों से अमेरीका और इरान के दौरान संबंधों में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है. इस स्थिति में कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिखाई देता. कुछ ही महिनों बाद अमेरीका में राष्ट्रपतिपद के लिए चुनाव होना है. इन चुनावों में अगर फिर एक बार ट्रम्प की सरकार बनीं, तो इसकी काफी ज्यादा सम्भावनाएं बन सकती है कि, अमेरीका इरान पर धावा बोल दें.
अमरीका की नजर पिछले कई दशकों से इरान के तेल भांडारों पर है. लेकिन वहां की धूर अमेरीकाविरोधी सरकारें ऐसा होने नहीं दे रही है. 1979 में इरान में हुई इस्लामिक क्रांति ने अमेरीका और इरान के संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया था.
तब तक अमेरीका और इरान की तत्कालीन शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सरकार के काफी मधूर संबंध थे. सरकारविरोधी ताकतें यह कहती है कि, यह सरकार पूरी तरह से अमेरीका परस्त थीं और इससे इरान का काफी नुकसान हो रहा था. इसलिए वहां पर अयातुल्लाह रहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में एक बड़ा आंदोलन चला और शाह पहलवी की सरकार का तख्तापलट हो गया.
उस समय अमेरीका के राजनयीक और उनके परिजन वहां मौजूद थे, उन्हें बंधक बनाया गया था. यह नाटक करीब 400 दिनों तक चला था. बाद में इरान सरकार ने सभी को सकुशल वहां से जाने दिया. लेकिन अमेरीका और इरान के बीच की खटास काफी बढ़ गई.
तनाव में कब हुई बढ़ोतरी?When did stress increase?
अमेरीका में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प वर्ष 2015 में राष्ट्रपति बने और तभी से अमेरीका और इरान में तनातनी बढ़नी शुरू हो गई थी. यह तनातनी तब और बढ़ी जब ट्रम्प ने सभी महासत्ताओं के साथ हुए अमेरीका के सभी करारों की समीक्षा कर उन्हें निरस्त करने की घोषणा की. इसमें इरान के साथ किया गया. समझौता संयुक्त कार्रवाई व्यापक योजना-Joint Comprehensive Plan Of Action-JCPOA) का भी समावेश था.
Iran downing of drone spelled disaster for @USNavy: Report#Iran #US #RQ4A #IranUSTension https://t.co/rvPVQkeBLy— Iran (@Iran) December 15, 2019
क्या मानता है इरान?
What does Iran think?
हालांकि, अमेरीका यह दावा कर रहा है कि, इरान परमाणु ऊर्जा के नाम पर विनाशकारी हथियार बना रहा है, लेकिन इरान इसे सीरे से खारीज करता है. इरान का कहना है कि, उसका परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय नियमों के अधीन है और अमेरीका पूरी तरह से झूठ बोल रहा है. दरअसल अमेरीका इराक की तरह ही इरान पर व्यापक जनसंहारक अस्त्रों का आरोप लगाकर हमला करना चाहता है, यह दावा इरान का है. बूश सरकार ने 2003 में इराक पर व्यापक जनसंहार के अस्त्र होने का आरोप करते हुए हमला कर दिया था और तत्कालीन सद्दाम हुसेन की सरकार को अपदस्थ कर दिया था. तब से अब तक इराक में अराजकता का वो माहौल बन चुका है, जिसे बुझाते-बुझाते वहां के नस्लों की कमर टूट रही है. इरान सोचता है कि, अमेरीका इरान पर इसी तरह के आरोप लगाकर और हमला कर उसे बर्बाद करना चाहता है. दरअसल इसके पीछे कहीं ना कही तेल का खेल होने की बात कई विशेषज्ञ कहते है.
President Hassan Rouhani became the first Iranian head of state to visit Japan for two decades on Friday, as Tokyo seeks to mediate between Tehran and Washington amid spiraling nuclear tensions. https://t.co/LK8XF3MGsJ— Bourse & Bazaar (@BourseBazaar) December 20, 2019
कहां भड़की चिन्गारी?
Where is the beginning?
हालांकि, इरान और अमेरीका के दौरान तनातनी चल ही रही थी कि, इस आग में घी डालने का काम अमेरीका के अनपेड़ नौकर ब्रीटेन ने कर दिया. हर्मूज स्ट्रेट में ब्रीटेन ने इरान का एक तैल टैंकर पकड़ लिया, जिससे इरान काफी आगबबुला हो उठा. अमेरीका-ब्रीटेन का दावा था कि, यह तेल टैंकर सीरिया जा रहा था. इस घटना से दबाव में आने की बजाय इरान ने पलवटवार कर दिया और अमेरीका के तेल टैंकर पर कब्जा कर लिया. इस बीच अमेरीका ने एक इरानी तेल टैंकर की जासूसी कर रहे अमेरीकी ड्रोन को निशाना बनाया. खास बात यह कि, यह ड्रोन इतना अत्याधुनिक था कि उसपर हमला हो ही नहीं सकता, ऐसा अमेरीका का मानना था. लेकिन अमेरीका यह भरम भी टूट गया. इसके फौरन बाद ही अमेरीका इरान पर धावा बोल देता लेकिन उसे इस इलाके में मौजूद अपने युद्धपोत की चिंता है. अगर इरान की ओर से इस युद्धपोत पर हमला किया जाता तो इसमें अमरीका का अरबो डालर का नुकसान सहना पड़ता. इसे देखते हुए अमेरीका ने केवल और केवल आर्थिक प्रतिबंधों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उसका दायरा बढ़ा दिया. कुछ दिन पहले अमेरीका ने इरान पर साईबर अटैक करने की भी बात सामने आई, लेकिन इसका इरान ने पूरी तरह से खंडन कर दिया. इस स्थिति में आज भी रूस और चीन जैसी महाशक्तियां आज भी इरान के साथ खड़ी है, जोकि अमेरीका का खीज बढ़ाने वाली बात है.
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