पूरे विश्व को युद्ध की आग में झोंक रहा है अमेरीका (hindi)
अंध राष्ट्रवाद की लहर जगाकर चुनाव जितने का ट्रम्प का प्रयास
अमेरीका के ट्रम्प सरकार ने बारूद के ढेर पर सवार मध्यपूर्व को युद्ध की आग में झोंकने के लिए बाती को सुलगा दिया है. इसी वर्ष अमेरीकी नागरिकों को अपना नया राष्ट्रपति चुनना है और वह राष्ट्रपति दुसरा कोई ना हों और अपने आप चल रहे महाभियोग की प्रक्रिया से लोगों का ध्यान भटकाने के धूर्त इरादे से कुछ दिन पहले अमेरीकी सेना ने इराक के हवाई अड्डे पर एक हमला कर इरान के सबसे ताकतवर सेनाप्रमुख को मौत के घाट उतार दिया.
पूरे विश्व में पूँजीवाद परचम लहाने का ठेका ले रखे और इसके माध्यम से विश्व के सभी देशों का शोषण करने की तमन्ना रखने वाले अमेरीका की जितनी भर्त्सना हों उतनी ही कम है. अमेरीकन आतंकवाद बदतरीन और खून से सना चेहरा इस आतंकी हमले के बाद पूरे विश्व के सामने आ गया है. जरुरत है अमेरीका के इस पूँजीवादी आतंकवाद के खिलाफ उठ खड़े होने का.ट्रम्प की युद्धोन्मादी चालें
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इसमें कुछ देश पहले से उसका विरोध कर रहे है. 1979 में इरान में आयातुल्लाह खोमेनी द्वारा इस्लामी क्रांति के बाद से ही इरान और अमेरीका एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए थे. इरान को तबाह करने के लिए अमेरीका ने आज तक कई सारे नुस्खे आजमाए. लेकिन वे सफल नही हो पाए है.
#BREAKING: #Iran announced the fifth and final step to drop its commitments pertaining to landmark 2015 #NuclearDeal, official IRNA news agency reported pic.twitter.com/9KnR8g5Ma1— People's Daily, China (@PDChina) January 5, 2020
रोनाल्ड रिगन से लेकर जाॅर्ज बूश (जुनिअर) तक सभी ने इरान की धज्जियां उड़ाने का असफल प्रयास किया. इसके लिए इस्त्राइल का हर संभव तरीके से इस्तेमाल किया गया. डोनाल्ड ट्रम्प पिछले चार वर्षों से ही इरान को नेस्तोनाबूत करने के लिए हर तरह के हथकंडे आजमाते आ रहे है. उन्होंने कुछ महिने पहले इरान के तेल टैंकरों को रोकने का प्रयास किया. इसके लिए ब्रीटेन का भरपूर इस्तेमाल किया गया. लेकिन हर बार अमेरीका को इरान से मूंह की खानी पड़ी. इन घटनाओं से अमेरीका की खीज काफी बढ़ती गई.
क्या हुआ घटनाक्रम?
कुछ महिने पहले इरान का तेल टैंकर समुंदर में अमेरीकी सेना के इशारे पर ब्रीटेन की सेना ने अपने कब्जे में लिया था. अमेरीका इसके माध्यम से इरान को घुटने टेकने को मजबूर कर हा था. लेकिन इरान नहीं झुका और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ब्रीटेन को दो कदम पिछे लेकर यह तेल टैंकर छोड़ना पड़ा. इस घटना से ट्रम्प सरकार काफी तिलमिला उठी थी.इसके अलावा कुछ महिने पहले अमेरीका का एक काफी उन्नत तकनीक वाला ड्रोन मिसाइल हमले में मार गिराया था. यह ड्रोन इरान की जासूसी कर रहा था. अमेरीका का यह ड्रोन इतना उन्नत था कि, उसे कोई मार नहीं सकता, इस घमण्ड में अमेरीका था. लेकिन उसका यह भरम टूट गया, जब इरान ने उस ड्रोन को मार गिराया. साथ ही 27 दिसम्बर को इराक के अमेरीकी सैनिकी बेस पर एक हमला हुआ था. तभी से इरान और अमेरीका के बीच का तनाव चिन्गारी से आग की शक्ल में तब्दील हुआ था.
अमेरीका और इरान दोनों ने ही अपने विरोधी सेना को आतंकी संगठन के तौर पर घोषित किया था. हाल ही में बगदाद में स्थित अमेरीकी दुतावास पर क्रुद्ध भीड़ की ओर से हमला किया गया. इन सभी वारदातों के पिछे मास्टरमाइंड सुलेमानी होने का आरोप अमेरीका करता है.
ऐसे में इरान के सबसे ताकदवर सैन्य प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी इराक के दौरेपर गए थे. अमेरीका ने इसे एक बेहतरीन अवसर समझा. जब कासीम सुलेमानी बगदाद के एयरपोर्ट पर जा रहे थे, उसी वक्त अमरेकी सेना ने हवाई हमले में उन्हें मार गिराया.
उनके साथ हिज्बुल्लाह संगठन का कमांडर अबू महदी अल मुहांदीस समेत सेना के कुछ कमांडर भी मौजूद थे. इस हमले के बाद एक अंगुठी से कासिम सुलैमानी की मौत की पुष्टि हो गई है. बाद में अमेरीकी सेना की ओर से इस हमले की जिम्मेदारी ली गई. इस हमले से पूरे मध्य पूर्व में और खास तौर पर इरान में काफी क्रोध उबल रहा है और इरान की ओर से जल्द ही कोई तीखा हमला होने के आसार काफी बढ़ गए है.
कौन थे कासिम सुलेमानी?
कासिम सुलेमानी का जन्म इरान के क्रमन प्रांत में 11 मार्च 1957 में हुआ था. 1979 में इरान में इस्लामिक क्रांति के बाद 1980 में इराक के साथ हुए विनाशकारी युद्ध में सैनिक के तौर पर दाखिल हुए थे. इस युद्ध में बेहतरीन काम करने के चलते उन्हें प्रमोशन मिलता रहा और वे जनरल के पद तक पहुंचे थे.
इरान की विदेशों में सैन्य कार्रवाईयां करने वाली कुद्स ब्रिगेड के प्रमुख थे जनरल कासिम सुलेमानी. उनके नेतृत्व में कुद्स ब्रिगेड ने इरानी सीमाओं समेत पड़ौसी देशों में अपना मजबूत जाल बिछाया है. सीरिया से लेकर इराक तक और फिलीस्तीन से लेकर और यमन तक कुद्स ब्रिगेड अपनी पैठ जमा चुकी है.
काफी कम समय में सुलेमानी के कुशल नेतृत्व में कुद्स सेना ने विभिन्न देशों में सफल आॅपरेशन कराए. इरानी सेना को अधिक ताकतवर बनाने में उनकी भूमिका अहम रही. उन्हें एक जांबाज सैन्य अधिकारी के तौर पर पहचान मिली, जिससे इरानी जानता उन्हें अपना हिरो मानती थी.
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सुलेमानी इरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयातुल्लाह अली खामनेई के खास करीबी रहे है. वे सीधे उन्हें ही पूरी रिपोर्टिंग करते है. इरानी जनता भविष्य में सुलेमानी में अपना नया राष्ट्रपति देखती थी. इराक से आईएसआईएस जैसे खतरनाक आतंकी संगठन को नेस्तोनाबूद करने में उन्होंने अहम भूमिका अदा की थी. साथ ही सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में वहां के सत्ताधीश बशर अल असद के साथ मिलकर अमेरीकी फौजों को उनकी नानी याद दिला रहे है.
उन्हीं की सामरिक मदद के चलते हिज्बुल्लाह काफी ताकतवर संगठन बनकर सामने आई. साथ ही वे फिलीस्तीन के विद्रोही गुटों की मदद करते थे, जिससे इस समय इस्त्राइल के पसीने छूट रहे है. अमेरीकी सामरिक मदद के दम पर पूरे मध्यपूर्व में कुलांचे मारने वाला तथा वहाबीजम की सनातनी आग को हवा देने वाला सौदी पिछले कई वर्षों से यमन में सितम की इंतेहा कर रहा है.
अपनी कट्टर वहाबी सोच के चलते सौदी शियाबहुल यमन के लोगों का दमन कर रहा था. इसके विरोध में वहां पर लड़ाई लड़ रहे हूति विद्रोहियों का कासिम सुलेमानी समर्थन करते थे.
इतना ही नहीं बल्कि भारत में आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान में बलोचिस्तान की स्वतंत्रता का जो आंदोलन चल रहा है, उन बलौच विद्रोहियों को भी वे सपोर्ट करते थे.
कई विदेशी देशों के मंत्री और डिप्लोमैट उनमें एक मंझा हुआ कूटनीतिज्ञ होने की बात कहते थे.
अमेरीका-इरान के तनाव का क्या है कारण?
2003 में इराक पर अमेरीका ने हमला कर सद्दाम हुसेन का तख्तापलट कर दिया था. इसके बाद अमेरीका ने काफी हद तक इराक का शोषण किया. यही हाल वह इरान का भी करना चाहता है. अमेरीका राष्ट्रपति को वहां की जनता भलेही वोट देकर चुनती होगी, लेकिन वहां की सरकार गठन करने में वहां के पूँजिपतियों का अहम भूमिका होती है. वहां के ज्यादातर पूँजीपति या तो हथियारों के कारखानों के है या ऑइल कंपनियों के.
इसके अलावा कई सारी मल्टीनेशनल कंपनियां अमेरीका से ही आती है. यह सभी पूँजीपति-उद्योगपति बाद में अमेरीकन सरकार पर दबाव बनाकर पूरे विश्व में अशांति फैलाने पर मजबूर करती है. जिससे उनके उद्योग अच्छी तरह चल सके और वे लोगों के खून से मुनाफा निचोड़ सकें. कहीं ना कहीं यह मंशा अमेरीका की इरान पर हमले के संदर्भ में
दूसरा अमेरीका की नजर इरान के तेल भांडारों पर भी है. इसलिए अमेरीका इरान के परमाणु कार्यक्रम की आड़ में इरान को अपना गुलाम बनाना चाहता है. दूसरा प्रमुख कारण है इस्त्राइल. एक समय था जब दुनिया भर में यहुदियों पर काफी जुल्म हुएं, उनका कत्लेआम किया गया. इसी चलते महासत्ताओं ने मध्यपूर्व में इस्त्राइल को बसाया. इस देश को स्थापना से ही अरब राष्ट्रों के आक्रमण का सामना करना पड़ रहा है.
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ताकत का संतुलन बदल चुका है. आज शिकार खुद शिकारी बन गया है. इस्त्राइल आज फिलीस्तीन से लेकर सीरिया तक और तुर्कस्तान से लेकर लेबनाॅन तक सभी को परेशान कर रहा है.
इस्त्राइल की विस्तारवादी हवस के चलते मध्यपूर्व के करोड़ो लोग प्रभावित हुए है. फिर भी अमेरीका इस्त्राइल का समर्थन करता है. लेकिन इरान पिछले कई वर्षों से फिलीस्तीनी विद्रोहियों को समर्थन दे रहा है. इस काम को सुलेमानी बखूबी निभा रहे थे. इन सभी के चलते अमेरीका कासिम सुलेमानी को रास्ते से हटाना चाह रही थी, जोकि उसने कर दिखाया.
ट्रम्प की कुर्सी में लगी है सेंध
दूसरी तरफ अमेरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कुर्सी में इस समय सेंध लगी हुई है. उनके खिलाफ वहां पर महाभियोग की प्रक्रिया चल रही है. अगर यह महाभियोग पारीत हो जाता है, उन्हें अपना मूंह छिपाते फिरना पड़ सकता है. पिछले चार वर्षों के दौरान उनके मगरुर और उटपटांग फैसलों अमेरीकी जनता का जीवनस्तर और भी गिर चुका है. वहीं इसी वर्ष अमेरीका में राष्ट्रपति का चुनाव भी होना है, जिसमें फिर एक बार ट्रम्प को अपना दांव आजमाना है.विख्यात शायर राहत इंदौरी का शेर है, वे कहते है कि....
`सीमा पर बहुत तनाव है क्या,
पता करो देश में कही चुनाव है क्या`
इरान पर हमला कर देश में राष्ट्रवाद की अंधी लहर दौड़ाकर उस पर सवार होने की ट्रम्प मंशा इस हमले में कहीं ना कहीं झलकती है. इस सबके नतीजे में अमेरीका ने इस आतंकी हमले की घटना को अंजाम दिया होगा, ऐसा कई सारे अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है.
क्या होंगे नतीजे?
अब जबकि अमेरीका ने इस तरह का कायराना आतंकी हमला कर दिया है, तो इसे एक तरह से जंग का ऐलान ही कहा जा रहा है. इस घटना के बाद इरान में क्रोध की सुनामी सी आ गई है. फिर एक बार इरान में अमेरीका से बदला लेने के सूर तेज हो गए है. इरान भी इस घटना के बाद चूप नहीं रहेगा, क्योंकि अगर वह चूप रहता है तो यह उसकी कायरता समझी जाएगी और अमेरीका और ज्यादा हमलों के लिए तैयार होगा. इसलिए इरान अब अमेरीका को जोरदार सबक सिखाने की बात कर रहा है.लेकिन जो भी हो तनाव की इस स्थिति में अभी से पूरे विश्व में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उछाल शुरू हो गया है. अगर यह यद्ध भड़क उठता है, तो आने वाले समय में पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान को छू सकती है. इससे कई सारे देशों में लोगों पर महंगाई के कोड़े और तेज हो सकते है. भारत की अर्थव्यवस्थाएं इस समय मंदी की चपेट में है. देश में बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है. ऐसे में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े तो भारत पर काफी बुरा असर होगा.
भारतीय मीडिया की झलक रही अज्ञानता
इस पूरे मामले के संदर्भ में भारतीय मीडिया की बड़ी अज्ञानता झलक रही है. भारतीय मीडिया इस घटना के संदर्भ में रिपोर्टिंग करते हुए विदेशी और खास कर अमेरीकी मीडिया की खबरों की काॅपी-पेस्टिंग कर रहा है. जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरीकी मीडिया एक आतंकवादी संगठन का नेता के तौर पर पेश कर रहा है. भारतीय मीडिया भी उसी तरह से इसका चित्रण दिखा रहा है. कई मीडिया चैनलों या अखबारों ने तो कासिम सुलेमानी का जिक्र ऐसे कर रहे है, जैसे किसी आतंकवादी गुट का सरगना मारा गया. कासिम सुलेमानी एक सार्वभौम राष्ट्र की एक सेना के प्रमुख थे. वे कट्टर इस्लामिक सोच वाले आतंकी संगठनों के साथ लड़ रहे थे. वे कट्टर वहाबीजम के खिलाफ़ एक योद्धा की तरह लड़ रहे थे. भारत और इरान एक दूसरे के काफी घनिष्ठ मित्र है. इस घनिष्ठ रिश्ते को याद रखना चाहिए था. मीडिया की जिम्मेदारी है कि, किसी भी मामले की सत्यता लोगों तक पहुंचाई जाए. लेकिन मीडिया इस संदर्भ में उदासीनता की परम पराकाष्ठा में दिखाई दे रहा है.
भारत सरकार को संज्ञान लेना जरुरी
अमेरीका को पिछले कई वर्षों से यह बात खल रही है. वह भारत पर बार-बार दबाव डालता है कि, भारत इरान से तेल ना खरीदें. लेकिन अगर भारत को इरान से सस्ते में तेल मिलता है, तो इसमें अमेरीका को क्या दिक्कत है. जहां पर अमेरीकी बहुराष्ट्रिय कंपनियों के तेल भंडार है, वहां से भारत तेल खरीदें इसके लिए अमेरीका दबाव बनाता रहता है. भारत और इरान के संबंधों देखते हुए फौरन इस घटना की कड़ी से कड़ी निंदा होनी चाहिए और अमेरीकी युद्धोन्मादी दुष्कृत्यों का विरोध होना चाहिए.
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