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Can Artificial Intelligence Replace Humans? (Hindi)


गैलिलिओ के समय से लेकर आज के आधुनिक युग तक टेक्नोलॉजी का सफर कुछ लंबा रहा होगा. आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और मानवी बुद्धिमत्ता के बीच एक नए संघर्ष का अध्याय शुरू हो चूका हैं, ऐसा माना जाता हैं.

वैसे तो मानवी बुद्धिमत्ता की जटिलता एवं क्लिष्टता Artificial Intelligence (A.I.) से कई ज्यादा हैं, और आज का आधुनिक मानव भी इसे समझ नहीं पाया हैं. इसके विपरीत Artificial Intelligence कई क्षेत्रों में मनुष्यों के लिए एक वरदान साबित होता दिखाई दे रहा हैं. Google और Microsoft जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटी कंपनियों में Artificial Intelligence का बड़ी मात्रा में उपयोग होते दिखाई दे रहा हैं.

फिर भी कृत्रिम बुद्धि के विकास ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं और मानव अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और उच्च-स्तरीय समितियां इस बात को सुनिश्चित कर रही हैं कि Artificial Intelligence के विकास से मानव जाति को केवल लाभ होगा और मानव अधिकारों पर इसकी वजह से कोई गाज नहीं गिरनेवाली.

विवाद के मुद्दे अपनी जगह, मगर Artificial Intelligence मनुष्यों के लिए वरदान साबित होते दिखाई देता हैं. इसकी वजह से मानव द्वारा होने वाली गलती के आसार ख़त्म हो जाते हैं. इसीलिए मेडिकल जैसे क्षेत्र जहां अभी और काफी लम्बी दूरी तक अध्ययन करने की जरुरत हैं, ऐसे क्षेत्रों में ख़ास तौर से इसका महत्त्व असीम माना जा रहा हैं.
जनवरी महीने के शुरुआत में हुए एक अध्ययन से Artificial Intelligence के चौंकाने वाले नतीजे सामने आये हैं. चिकित्सा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करने की दिशा में पता चला हैं कि, कंप्यूटरों को प्रोस्टेट ट्यूमर की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टरों द्वारा किये गए निदानों से मिलान करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता हैं.

इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रोस्टेट टिश्यूज में कैंसर कोशिकाएं हैं या नहीं, यह निर्धारित करने में उनकी कृत्रिम बुद्धि प्रणाली "बिल्कुल सही" थी. और यह प्रोस्टेट ट्यूमर की गंभीरता को देखते हुए विश्व के 23 अग्रणी डॉक्टरों द्वारा किये गए डायग्नोसिस (निदान) के बराबर था.

इसका मतलब यह नहीं कंप्यूटर को डॉक्टरों की जगह लेनी चाहिए. लेकिन कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि Artificial Intelligence तकनीक चिकित्सा निदान की सटीकता और दक्षता में बड़ा सुधार ला सकती हैं.


आमतौर पर, यह किस तरह से काम करता है?


शोधकर्ताओं ने "गहरी शिक्षा" (deep learning) का उपयोग करके एक एल्गोरिथ्म (algorithm) विकसित किया है, जहां एक कंप्यूटर सिस्टम मस्तिष्क के तंत्रिका नेटवर्क (brain's neural networks) की नकल करती है.

उदाहरण के लिए, यह बड़ी संख्या में छवियों - डिजिटल मैमोग्राम्स बनाती हैं. और यह खुद को प्रमुख विशेषताओं को पहचानना सिखाता है, जैसे कि ट्यूमर के संकेत.

शोधकर्ताओं ने एक Artificial Intelligence प्रणाली पर सूचना दी जो स्क्रीनिंग मैमोग्राम की व्याख्या जिस तरह की जैसे की एक सर्वश्रेष्ठ रेडियोलॉजिस्ट करता हैं. अन्य अध्ययनों में पाया गया है कि Artificial Intelligence डॉक्टरों को त्वचा के कैंसर से हानिरहित मोल्स को अलग करना और लिवर नोड नमूनों में Brest Tumour Tissues का पता लगाने में मददगार साबित हुआ हैं.

इस नए अध्ययन में एक प्रयोग किया गया, कि Biopsy किए गए Tissues के नमूनों में प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने और "ग्रेड" करने के लिए AI प्रणाली को प्रशिक्षित करना संभव है या नहीं.

आम तौर पर, यह Clinical Pathologist Specialist का काम है. ऐसे विशेषज्ञ जो रोग का निदान करने में सहायता के लिए Tissues की जांच करते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि यह कितना गंभीर या उन्नत है.

स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ शोधकर्ता मार्टिन एकलुंड बताते हैं कि, यह काम कुछ हद तक कड़ी मेहनत कर ही किये जाने वाला काम हैं.

अकेले अमेरिका में, 10 लाख से अधिक पुरुष हर साल एक प्रोस्टेट बायोप्सी से गुजरते हैं और 1 करोड़ से ज्यादा Prostate Tissues Samples की जांच की जाती है.

इस प्रयोग में की बनायी गयी A.I. सिस्टम को बनाने के लिए, शोधकर्ताओं ने स्वीडिश पुरुषों की 50 से 69 वर्ष की उम्र में 8,000 से अधिक प्रोस्टेट टिशू के नमूनों का डिजिटलीकरण किया, जिससे उच्च-रिज़ॉल्यूशन के चित्र बनाए गए. उन्होंने तब लगभग 6,600 छवियों के लिए प्रणाली को उजागर किया - यह कैंसर और गैर-कैंसर वाले Tissues के बीच के अंतर को जानने का प्रशिक्षण इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता सिस्टम को दिया गया.

इस A.I. प्रणाली को शेष नमूनों में कैंसर से सौम्य टिश्यूज (Benign Tissues - यह कैंसर के ऐसे टिश्यू होते हैं, जो एक टिश्यू से दुसरे टिश्यू को प्रभावित नहीं करते. इस टाइप के कैंसर को एक बार अगर शरीर से अलग किया जाए तो फिर से कैंसर होने का खतरा नहीं  होता हैं.) को अलग करने के लिए कहा गया था, इन पुरुषों से लगभग 300 जो करोलिंस्का में बायोप्सी कर चुके थे और जिनके बायोप्सी रिपोर्ट्स को कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले रिपोर्ट्स से आगे जांचा गया. इस AI  के परिणाम उसी तरह आये जैसे की डॉक्टरों द्वारा निदान किये गए थे.

प्रोस्टेट कैंसर की गंभीरता को समझने के लिए डॉक्टर ग्लीसन स्कोर (Gleason score) जांचते हैं. Gleason score  से डॉक्टर यह अनुमान लगाते हैं की यह कैंसर कितनी तेजी से और कितने ज्यादा टिश्यू में फ़ैल सकता हैं. इस AI प्रणाली Gleason score के आये हुए नतीजे 23 विशेषज्ञों द्वारा निकाले गए निष्कर्षों से मिलते-जुलते ही आये. जिससे यह नतीजा यह निकलता हैं की प्रोस्टेट कैंसर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरी तरह से कारगर सिद्ध हो सकता हैं.  

हालांकि, शोधकर्ता मानते हैं की इसमें अभी और बहोत काम होना बाकी हैं. एक अगला कदम यह उठाया जा सकता कि एआई प्रणाली विभिन्न प्रयोगशालाओं और विभिन्न पैथोलॉजी स्कैनर के जो डिजिटल छवियों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, उसमें इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग हो.

शोधकर्ता मानते हैं की एक दिन AI का उपयोग कई तरीकों से किया जा सकता है - जिसमें इंसानी गलतियां एवं ऐसी गलतियों होने वाले गंभीर परिणाम को रोकने के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह AI का इस्तेमाल किया जा सकता हैं.

इस तरह के अध्ययन एआई को चिकित्सा एवं अनुसंधान पद्धति में शामिल करने की दिशा में एक जरूरी कदम है, ऐसा भी कई डॉक्टर्स मानते हैं. मगर अभी काफी दूरी तय करनी हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हैं.

शोधकर्ता मानते हैं कि, इस एआई सिस्टम को विभिन्न केंद्रों तथा विभिन्न पैथोलॉजी स्कैनर्स में मान्यता मिलनी चाहिए.

इस अध्ययन से यह बात स्पष्ट है कि मशीनें (AI) फिलहाल मनुष्यों की जगह नहीं ले सकती  - कम से कम निकट भविष्य में पक्का नहीं ले सकती. 





इस आर्टिकल में लिए गए तथ्य The Lancet Oncology द्वारा ऑनलाइन रिपोर्ट से लिए गए हैं जो ८ जनवरी को प्रकाशित हुआ था. 
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