Ayurveda is the Way of Maintaining Health of Society alongwith Body and Mind (Hindi)
शरीर और मन के साथ-साथ समाजस्वास्थ्य सदृढ रखने के लिए है आयुर्वेद
शारंगधर फार्मास्युटिकल्स के प्रमोटर और विख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉक्टर जयंत अभ्यंकर के अनुसार,
आयुर्वेद यह शब्द ‘आयुर’ यानी जीवन और ‘विद’ यानी जानना इन दो शब्दों के मिलाप से बना है. इसका मतलब है हमारे जीवन में जन्म से लेकर मृत्यू तक हमारे जीवन को अच्छी तरह से जांचना और परखना.
आज के आधुनिक युग में हमें यह अपने आप से प्रश्न पूछना चाहिए क्या वाकई में हम अपने जीवन को करीब से समझ पाए है? यह सवाल पूछने पर ज्यादातर लोगों का जवाब यही होगा, ‘जाने दो यार इतना समझने के लिए यहां वक्त किसके पास है’. लेकिन हमारी यही भूमिका हमारे स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन रोखने के खिलाफ है. इसलिए हमें स्वस्थ मन और तंदुरुस्त शरीर रखना है, तो हमें इस बात पर गौर करना जरुरी है.
हिताहितम् सुखम् दुःखम् ।
आयुस्तस्य हिताहितम् ।।
मातंच तच्च यत्रोक्त ।
आयुर्वेदः स उच्च्यते ।।
इसका मतलब है कि, हमारे जीवन क्या हितकारक है और क्या अहितकारक है, इसे पहचानना ही आयुर्वेद है. इसमें केवल शरीर की दृष्टि से हितकारक या अहितकारक नहीं, बल्कि मानसिक तौर पर भी क्या हितकारक और क्या अहितकारक है, इसे पहचनानना आयुर्वेद की मूल अभिव्यक्ति है.
डॉक्टर जयंत अभ्यंकर के मानते हैं, कि अगर हम यह अच्छी तरह से पहचान सके तो और समाज में ज्यादातर लोग शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ हों, तो एक स्वस्थ समाज और स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण आसानी से संभव है. यही विचार और यही भाव आयुर्वेद की मूल भावना में प्रतिबिंबीत होता है. चूंकि, अगर पर्यावरण या प्रकृति स्वस्थ रहें तो मानवी जीवन और भी सुंदर और स्वस्थ बनता है. इसलिए मनुष्यों द्वारा केवल अपने शरीर का ही नहीं बल्कि प्रकृति का भी स्वास्थ्य अच्छा रहें, इसकी सीख दिलाने का काम आयुर्वेद करता है
इसलिए मनुष्य और पर्यावरण तथा प्रकृति में मौजूद जैवविविधता को बचाए रखने में सहयोग देने वाले शास्त्र का नाम है आयुर्वेद. आयुर्वेद की इसी मूल भावना को बरकरार रखने के चलते हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते है.
क्या है आयुर्वेद? (What is Ayurveda?)
शरीरशास्त्र की परिभाषा (Definition of physiology)
हमारा शरीर पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश इन पंचमहाभूतों से निर्मित है. इन महाभूतों से बने इस शरीर में मनुष्य को जन्मत: त्रिदोष मौजूद होते है. यह त्रिदोष है वात, पित्त और कफ. यह ‘दोष’ शब्द उस मायने में नहीं जिसे हम किसी दोषी व्यक्ति के लिए आम तौर पर इस्तेमाल करते है. यह ‘दोष’ शब्द शरीर के मूल रूप के तौर पर जाने जाते है. अब हम पंचमहाभूत और त्रिदोष का मिलाप किस तरह है, यह जानेंगे. पंचमहाभूत में से पृथ्वी और आप इनसे ‘कफ’ इस महादोष की निर्मिती होती है. ‘तेज’ इस महाभूत से पित्त उत्पन्न होता है तथा वायु और आकाश से ‘वात’ उत्पन्न होता है.
इसी बात का विश्लेषण करते हुए ड़ॉ. अभ्यंकर बताते हैं कि, जैसा कि हमने देखा कि, वात, पित्त और कफ यह त्रिदोष हर एक व्यक्ति जन्मत: प्राप्त होते है. इनमें दो तरह की कैटेगिरी होती है. एक होती प्राकृतिक और दूसरी विकृतपूर्ण. जब किसी बच्चे का जन्म होते समय उसे यह त्रिदोष मिलते है, उन्हें प्राकृतिक कहा जाता है. उसे शरीर में उस समय वात, पित्त और कफ की मात्रा का जोभी बैलेन्स हों, वह उसके लिए बेहतरीन और प्राकृतिक होता है. लेकिन जब इन तीनों त्रिदोषों का संतुलन बिगड़ने लगता है, तब वे विकृत रूप धारण कर लेती है और मनुष्य के शरीर में बीमारियों का दौर शुरू हो जाता है.
वैसे तो चिकित्सा शास्त्र की हर एक पैथी ही एक बीमार शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए प्रयास करती है, लेकिन आयुर्वेद का काम इससे भिन्न होता है. आयुर्वेद शरीर में बीमारी के मुख्य कारणों को खत्म करने का काम करता है.
वह बताते हैं कि, किसी भी बीमारी के लिए दो तरह के घटक कारण होत है. एक बाहरी और दूसरा आंतरिक. शरीर में आंतरिक कोई दुर्बलता पैदा होती है, जिससे बाहरी अटैक से बीमारी बढ़ती है. आयुर्वेद शरीर की उस आंतरिक दुर्बलता को खत्म करता है, जिससे उसपर बाहरी अटैक से कोई फर्क नहीं पड़ता. यह मुख्य काम आयुर्वेद करता है.
आज की तेज गति से दौड़नेवाले जीवन पद्धति पर भी ड़ॉ. अभ्यंकर कटाक्ष डालते हुए बताते हैं कि, इसके अलावा शरीर में टॉक्सिन्स के कारण बीमारियां बढ़ती है. शरीर में खाने, पिने और वायुप्रदूषण से टॉक्सिन्स बढ़ते है. यह टॉक्सिन्स शरीर को दुर्बल कर बीमारिया बढ़ाते है. यह टॉक्सिन्स शरीर के बाहर मल, मूत्र और स्वेद (पसिना) से निकाला जा सकता है.
Yeah, i agree with what was explained in your blog. Thank you for all the info. and your hard work. dianabol for sale
ReplyDelete