Modiji .... Have you forgotten something! (Hindi)
मोदीजी.... आप कुछ भूले तो नहीं !
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कहा जाता है कि, प्रकृति ने मनुष्य को दी हुई भूलने की आदत एक बेहतरीन वरदान है. क्योंकि जब हम कुछ बातों को भूल नहीं जाते तो जीवन में आगे नहीं बढ़ पाते. वास्तविकतः यादें एक ऐसी जंजीर की तरह होती है, जोकि हमारे पैरों में पड़ी रहती है और हमें आगे बढ़ने के लिए दिक्कतें पैदा करती है.
लेकिन यह भूलने की प्रक्रिया जब तक प्राकृतिक रहती है तब तक तो ठीक है. लेकिन अगर हम जानबूझकर कुछ बातों को भूलने (या भुलाने) लगें तो समझ लेना चाहिए की कुछ तो गड़बड़ है दया...! इस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री की बातों को सुनकर तो यूंही लगता है कि, वे कुछ बातों को जानबूझकर भूलने या फिर भुलाने का प्रयास कर रहे है.
वैसे हमारे प्रधानमंत्री काफी इवेंटप्रेमी दिखाई देते है. जब से वे प्रधानमंत्री पद पर आसीन है, तभी से देश से लेकर विदेशों तक विभिन्न प्रकार के इवेंट उन्होंने किए. इस काम में उन्हें काफी महारथ हासिल है. क्यों ना हों जब उन्हें सुनने के लिए हजारो लोग आते हों, उनके भाषणों को विभिन्न तरह के मीडिया पूरे विश्व के करोडो लोगों को तक पहुंचाने के लिए सुसज्जित हों, तो भला वे इस मौके को कैसे छोड़ेंगे.
खैर हम अपने महत्वपूर्ण मुद्दे पर (या औकात) पर आते है और फिर एक बार मोदीजी को सवाल पूछ ने का पाप (भक्तों की नजर में) करते है. वैसे तो हमारे पापों का हिसाब काफी लम्बा है. क्योंकि हमें मोदीजी को सवाल ना पूछने पर खाना ही हजम नहीं होता, तो खाना हजम करने के लिए हमें यह पाप करना पड़ता है. (क्या करें पापी पेट का सवाल है)
इस समय पूरे विश्व पर कोरोना वाइरस के संकट के घने बादल छाए हुए है. प्रतिदिन हजारो की तादाद में मौतों की खबर आ
रही है. पानी से लेकर हवाई तक बड़े-बड़े जहाज, फौजी टैंक, युद्ध पोतों से लेकर एयरफोर्स तक बनाने वाले देशों की इस समय खुली आंख से भी ना दिखने वाले छोटे से जीवन में बैंड बजा रखी है.
कोरोना वाइरस का यह संकट अब भात में भी धीरे-धीरे अपने पांव पसार रहा है. देश में भी त्राहीमाम मचाने के लिए उसने पूरी तैयारी कर ली है. ऐसे में हमें कोरोना के राक्षस को हराना है तो वह साबित हो सकता है केवल और केवल आज के उन्नत मेडिकल साइन्स की मदद से ना कि किसी गौमूत्र, गाय का गोबर या फिर किसी नमाज या जियारत से.
लेकिन जिस देश में धार्मिक मान्यताओं की जड़ें जनता के दिलो-दिमाग में काफी गहराई तक फैली हों और वैज्ञानिकता की बजाय पुरातन और अवैज्ञनिक बातों पर लोग ज्यादा भरोसा करते हों और अपने सभी दुखों के निवारण के लिए कोई मसिहा आएगा, ऐसी मान्यता हों, तो उस देश के लोगों को ज्यादा समझाने का प्रयास मतलब मुर्खता के पत्थर पर अपने सीर को फोड़ने जैसा है. हालांकि, यह स्थिति देश के किसी भी राजनेता के लिए काफी पोषक भी होती है.
क्योंकि उन्हें लोगों को जगाने के झंझट में पड़ना ही नहीं होता है. जरुरत होती है केवल आंखों को चकाचौंध करने वाले इवेंट की. देश के जनता की यही वो नब्ज है जोकि मोदीजी पकड़ बैठे है. इसलिए उन्होंने 5 तारीख के इवेंट का ऐलान किया. इस ऐलान के किसी भी प्रकार से टांय टांय फिस्स होने का सवाल ही नहीं पैदा होता, क्योंकि हमारे देश के लोगों में बुद्धिप्रामाण्यवाद की बजाय शब्दप्रामाण्यावाद का पलडा काफी भारी है.
मोदीजी ने 5 अप्रैल को जनता को दिए, टाॅर्च लगाने की सलाह तो दी, लेकिन कई सारी बातें वे भूल गए. मोदीजी से यह अपेक्षा थी कि, वे देश में कोरोना से निपटने के लिए देश की खस्ताहाल सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को कैसे मजबूत करेंगे. अपनी जान हथेली पर लेकर लोगों को इलाज कराने वाले डाॅक्टर, नर्सेस और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पहल करते.
देश में इस समय कोरोना वाइरस से लड़ने के लिए मास्क, सैनिटाइजर, हैण्ड ग्लोव्ज और विभिन्न तरह के सर्जिकल चीजों की काफी कमी है. काफी कम संसाधनों पर हमारे देश के डाॅक्टर, नर्सेस और स्वास्थ्य कर्मी जी जान से जूटे हुए है. क्या उन्हें बेहतरीन उपकरण, बेहतरीन सुरक्षा के साधन सरकार उपलब्ध करा पा रही है या नहीं, इन सभी बातों पर मोदीजी कन्नी काटते हुए दिखाई दे रहै है.
पूंजीवादी नीतियों के चलते पिछले तीन दशकों में देश की स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण किया गया. इस निजीकरण की दिमक ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को अंदर से जो खोखला बना दिया है, उसे सुधारने में क्या मदद वे दे सकते है, इन सारी बातों पर वे कुछ भी नहीं बोले.
कोरोना वाइरस को परास्त करने के लिए आज देश की स्वास्थ्य सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक आवंटन का इंजेक्शन देना जरुरी है, स्वास्थ्य कर्मियों के अनशेष को भरना जरुरी है, स्वास्थ्य कर्मियों को बेहतरीन सुविधा देने की आवश्यकता है. यह सब करने की बजाय मोदीजी ने फिर एक नए इवेंट का झुुनझुना देशवासियों के हाथों में पकड़ा दिया है.
मोदीजी का भाषण खत्म होने के साथ ही उनके भक्त (माफ करना लेकिन इससे बुरा शब्द मेरे पास नहीं है) मदारी के बंदर की तरह कुलांचे मारने में व्यस्त हो गए. वे अब वेदों से लेकर पुराणों तक और भगवद्गीता से लेकर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पुस्तकों में यह खोजने में है कि, मोदीजी ने इनमें से कौनसी पुस्तक पढ़कर यह शगुफा छोड़ा है. इसे जस्टीफाइ करने के लिए अब भक्तों हाथ में बैट लेकर मैदाने में कूद पड़े है.
इस आर्टिकल में इतना लम्बा सफर तय करने के बाद भी सवाल जस का तस बना हुआ है, क्या वाकई में दिया जलाने, टाॅर्च जलाने से कोरोना भाग जाएगा, या फिर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने पर. लेकिन इस नये भारत में यह सवाल पूछना हराम है. फिर भी हम इतना तो मोदीजी को याद दिलाएंगे ही क्या आप कुछ भूले तो नहीं है मोदीजी... !
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